________________ 262) [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [67 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक मनुष्य ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [67 उ.] गौतम ! उनमें तीन ज्ञान भजना से होते हैं और दो अज्ञान नियमतः होते हैं / 68. वाणमंतरा जहा नेरतिया (सु. 64) / [68] अपर्याप्त वाणव्यन्तर जीवों का कथन नैरयिक जीवों की तरह (सू. 64 के अनुसार) समझना चाहिए। 66. अपज्जत्तगा जोतिसिय-वेमाणिया पं० ? तिणि नाणा, तिन्नि अण्णाणा नियमा। [66 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त ज्योतिष्क और वैमानिक ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [66 उ.] गौतम ! उनमें तीन ज्ञान या तीन अज्ञान नियमतः होते हैं। 70. नोपज्जत्तगनोप्रपज्जत्तगाणं भंते ! जीवा कि नाणो ? जहा सिद्धा (सु. 38) / 5 / [70 प्र.] भगवन् ! नो-पर्याप्त-नो-अपर्याप्त जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [70 उ.] गौतम ! इनका कथन सिद्ध जीवों (सू. 38) के समान जानना चाहिए। (पंचम द्वार) 71, निरयभवत्था णं भंते ! जीवा कि नाणी, अण्णाणो ? जहा निरयगतिया (सु. 36) / [71 प्र.] भगवन् ! निरय-भवस्थ (नारक-भव में रहे हुए) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [71 उ.] गौतम! इनके विषय में निरयगतिक जीवों के समान (सू. 39 के अनुसार) कहना चाहिए। 72. तिरियभवत्था णं भंते ! जीवा कि नाणी, अण्णाणी ? तिणि नाणा, तिण्णि अण्णाणा भयणाए / {72 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चभवस्थ जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [72 उ.] गौतम ! उनमें तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। 73. मणुस्सभवस्था गं? जहा सकाइया (सु. 46) / [73 प्र.] भगवन् ! मनुष्यभवस्थ जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [73 उ.] गौतम ! इनका कथन सकायिक जीवों की तरह (सू. 46 के अनुसार) करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org