________________ 26.] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [54 उ.] गौतम ! इनके विषय में सकायिक जीवों (सू. 49 में कथित) के समान कहना चाहिए। 55. नोसुहमानोबादरा णं भंते ! जीवा० ? जहा सिद्धा (सु. 38) / 4 / [55 प्र.] भगवन् ! नो-सूक्ष्म-नो-बादर जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [55 उ.] गौतम ! इनका कथन सिद्धों की तरह समझना चाहिए। (चतुर्थ-द्वार) 56. पज्जत्ता णं भंते ! जीवा कि नाणी० ? जहा सकाइया (सु. 46) / [56 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [56 उ.] गौतम ! इनका कथन सकायिक (सू. 49 में कथित) जीवों के समान जानना चाहिए। 57. पज्जत्ता णं भंते ! नेरतिया कि नाणी० ? तिणि नाणा, तिणि अण्णाणा नियमा / [57 प्र] भगवन् ! पर्याप्तक नैरियक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [57 उ.] गौतम ! इनमें नियमतः तीन ज्ञान या तीन अज्ञान होते हैं / 58. जहा नेरइया एवं जाव थपियकुमारा। [58] पर्याप्त नैरियक जीवों की तरह यावत् पर्याप्त स्तनितकुमार तक में ज्ञान और अज्ञान का कथन करना चाहिए / 56. पुढविकाइया जहा एगिदिया। एवं जाव चतुरिदिया / [59] (पर्याप्त) पृथ्वीकायिक जीवों का कथन एकेन्द्रिय जीवों (सू. 45 में कथित) की तरह करना चाहिए / इसी प्रकार यावत् (पर्याप्त) चतुरिन्द्रिय (अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) तक समझना चाहिए। 60. पज्जत्ता गं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणिया कि नाणी. अण्णाणी ? तिणि नाणा, तिणि अण्णाणा भयणाए। [60 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [60 उ.] गौतम ! उनमें तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं / 61. मणुस्सा जहा सकाइया (सु. 48) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org