________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२] [259 48. अणिदिया णं भंते ! जीवा कि नाणी ? जहा सिद्धा (सु. 38) / 2 / [48 प्र.] भगवन् ! अनिन्द्रिय (इन्द्रियरहित) जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं ? [48 उ.] गौतम ! उनके विषय में सिद्धों (सू. 38 में कथित) की तरह जानना चाहिए / (द्वितीय द्वार) 46. सकाइया णं भंते ! जीवा कि माणी अन्नाणी ? गोयमा ! पंच नाणाणि तिणि अन्नाणाई भयणाए / [49 प्र.] भगवन् ! सकायिक (कायासहित) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [49 उ.] गौतम ! सकायिक जीवों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं / 50. पुढविकाइया जाब वणस्सइकाइया नो नाणी, अण्णाणी / नियमा दुअण्णाणी; तं जहामतिअण्णाणी य सुय अण्णाणी य / " [50] पृथ्वीकायिक से यावत् वनस्पतिकायिक जीव तक ज्ञानी नहीं, अज्ञानी होते हैं / वे नियमतः दो अज्ञान (मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान) वाले होते हैं। 51. तसकाइया जहा सकाइया (सु. 46) / {51] त्रसकायिक जीवों का कथन सकायिक जीवों के समान [सू. 49] समझना चाहिए / 52. अकाइया णं भंते ! जीवा कि नाणी? जहा सिद्धा (सु. 38) / 3 / [52 प्र.] भगवन् ! अकायिक (कायारहित) जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं ? {52 उ.] गौतम ! इनके विषय में सिद्धों की तरह जानना चाहिए। (तृतीयद्वार) 53. सुहुमा णं भंते ! जीवा कि नाणी ? जहा पुढविकाइया (सु. 50) / {53 प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [53 उ. गौतम ! इनके विषय में पृथ्वीकायिक जीवों (सू. 50 में कथित) के समान कथन करना चाहिए। 54. बादरा णं भंते ! जीवा कि नाणी ? जहा सकाइया (सु. 46) / [54 प्र.] भगवन् ! बादर जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org