________________ 258] [ व्याख्याप्रप्तिसूत्र [40 उ.] गौतम ! उनमें नियमतः दो ज्ञान या दो अज्ञान होते हैं। 41. मणुस्सगतिया णं भंते ! जीवा कि नाणी, अनाणी ? गोयमा ! तिण्णि नाणाई भयणाए, दो अण्णाणाई नियमा। [41 प्र.] भगवन् ! मनुष्यगतिक (मनुष्यगति में जाते हुए) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी है ? [41 उ.] गौतम ! उनके भजना (विकल्प) से तीन ज्ञान होते हैं, और नियमतः दो अज्ञान होते हैं। 42. देवगतिया जहा निरयगतिया। [42] देवगतिक जीवों में ज्ञान और अज्ञान का कथन निरयगतिक जीवों के समान समझना चाहिए। 43. सिद्धगतिया णं भंते ! // जहा सिद्धा (सु. 30) / 1 / / [43 प्र.] भगवन् ! सिद्धगतिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी है ? [43 उ.] गौतम ! उनका कथन सिद्धों की तरह करना चाहिए। अर्थात्-वे नियमतः एक केवलज्ञान वाले होते हैं / (प्रथमद्वार) 44. सइंदिया णं भंते ! जोवा कि नाणी, अण्णाणी ? गोयमा ! चत्तारि नाणाई, तिणि अण्णाणाई भयणाए / [44 प्र.] भगवन् ! सेन्द्रिय (इन्द्रिय वाले) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [44 उ.] गौतम ! उनके चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं / 45. एगिदिया णं भंते ! जीवा कि नाणी ? जहा पुढविक्काइया। [45 प्र.] भगवन् ! एक इन्द्रिय वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [45 उ.] गौतम ! इनके विषय में पृथ्वीका यिक जीवों (सू. 27 में कथित) की तरह कहना चाहिए। 46. बेइंदिय-तेइंदिय-चतुरिदियाणं दो नाणा, दो अण्णाणा नियमा / [46] दो इन्द्रियों, तीन इन्द्रियों और चार इन्द्रियों वाले जीवों में दो ज्ञान या दो अज्ञान नियमतः होते हैं। 47. पंचिदिया जहा सइंदिया। [47] पांच इन्द्रियों वाले जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों की तरह करना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org