________________ 256 ] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] एवं जाव वणस्सइकाइया / [32-2] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना चाहिए। 33. [1] बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! गाणी वि, अण्णाणी वि / जे नाणी ते नियमा दुण्णाणी, तं जहा-- आभिणिबोहियनाणी य सुयणाणी य / जे अण्णाणी ते नियमा दुअण्णाणी-प्राभिणिबोहियअण्णाणी य सुयप्रणाणी य। [33-1 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [33-1 उ.] गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः दो ज्ञान वाले हैं, यथा-मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी / जो अज्ञानी हैं, नियमत: दो अज्ञान वाले हैं, यथा-मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी। [2] एवं तेइंदिय-चरिदिया वि। [33-2] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी कहना चाहिए। 34. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि / जे नाणी ते प्रत्धेगतिया दुष्णाणी, प्रत्यंगतिया तिन्नाणी / एवं तिण्णि नाणाणि तिणि अण्णाणाणि य भयणाए / [34 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [34 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं / जो ज्ञानी हैं, उनमें से कितने ही दो ज्ञान वाले हैं और कई तीन ज्ञान वाले हैं। इस प्रकार (पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के) तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। 35. मणुस्सा जहा जीवा तहेव पंच नाणाणि तिण्णि अण्णाणाणि य भयणाए / [35] जिस प्रकार औधिक जीवों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार मनुष्यों में पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। 36. वाणमंतरा जहा नेरइया / [36] वागव्यन्तर देवों का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। 37. जोतिसिय-वेमाणियाणं तिणि नाणा तिणि अन्नाणा नियमा। [37] ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में तीन ज्ञान अथवा तीन अज्ञान नियमतः होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org