________________ अष्टम शतक : उद्देशक-२] [255 तिअण्णाणी / जे दुअण्णाणी ते मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य / जे तिअण्णाणी ते मतिप्रणाणी सुयप्रणाणी विभंगनाणी / [26 प्र.] भगवन् ! जीव ज्ञानी है या अज्ञानी है ? [26 उ.] गौतम ! जीव ज्ञानी भी है और अज्ञानी भी है / जो जीव ज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव तीन ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव चार ज्ञान वाले हैं और कुछ जीव एक ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं, वे मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं / जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी हैं, अथवा आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी होते हैं / जो चार ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रु तज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी हैं / जो एक ज्ञान वाले हैं, वे नियमत: केवलज्ञानी हैं। जो जीव अज्ञानी हैं, उनमें कुछ जीव दो अज्ञान वाले हैं, कुछ तीन अज्ञान वाले होते हैं। जो जीव दो अज्ञान वाले हैं, वे मति-अज्ञानी और श्रत-अज्ञानी हैं; जो जीव तीन अज्ञान वाले हैं, वे मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं। 30. नेरइया णं भंते ! कि नाणी, अण्णाणी ? गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि / जे नाणी ते नियमा तिन्नाणी, तं जहा-प्राभिणिबोहि० सुयनाणी प्रोहिनाणी / जे अण्णाणी ते प्रत्थेगतिया दुअण्णाणी, अत्थेगतिया तिअण्णाणी / एवं तिष्णि अण्णाणाणि भयणाए। [30 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [30 उ.] गौतम ! नैरयिक जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। उनमें जो ज्ञानी हैं, वे नियमत: तीन ज्ञान वाले है, यथा-प्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्रु तज्ञानी और अवधिज्ञानी / जो अज्ञानी हैं, उनमें से कुछ दो अज्ञानवाले हैं, और कुछ तीन अज्ञान वाले हैं। इस प्रकार तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं। भंते किनाणी अण्णाणी? जहेव नेरइया तहेव तिणि नाणाणि नियमा. तिष्णि य अण्णाणाणि भयणाए। (31-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [31-1 उ.] गौतम ! जैसे नैरयिकों का कथन किया गया है, उसी प्रकार असुरकुमारों का भी कथन करना चाहिए / अर्थात् जो ज्ञानी हैं, बे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं, वे भजना (विकल्प) से तीन अज्ञान वाले हैं। [2] एवं जाव थपियकुमारा। [31-2] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। 32. [1] पुढविक्काइया णं भंते ! कि नाणी अण्णाणी ? गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी-मतिमण्णाणी य, सुतअण्णाणी य। [32.1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [32-1 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। वे नियमत: दो अज्ञान वाले हैं; यथा--मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org