________________ 248] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 12. जइ भवणवासिदेवकम्मासीविसे कि असुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे जाव थणियकुमार जाव कम्मासीविसे? ____ मोयमा! असुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे वि जाव थणियकुमार जाव कम्मासीविसे वि। [12 प्र.] भगवन् ! यदि भवनवासी देव-कर्म-प्राशीविष होता है तो क्या असुरकुमार भवनवासी देव-कर्म-पाशीविष होता है, अथवा यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव-कर्म-प्राशीविष होता है ? [12 उ.] गौतम ! असुरकुमार भवनवासी देव-कर्म-पाशीविष होता है, यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव भी कर्म-पाशीविष होता है / 13. जह असुरकुमार जाव कम्मासीविसे कि पज्जत्तप्रसुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे ? अपज्जत्तसुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे ? गोयमा ! नो पज्जत्तनसुरकुमार जाव कम्मासीविसे, अपज्जत्तप्रसुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासौविसे / एवं जाव थणियकुमाराणं / [13 प्र.] भगवन् ! यदि असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव-कर्म-नाशी विष है तो क्या पर्याप्त असुरकुमारादि भवनवासी देव-कर्म-आशीविष है या अपर्याप्त असुरकुमारादि भवनवासी देव-कर्म-आशीविष है ? [13 उ.] गौतम ! पर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव-कर्म-आशीविष नहीं, परन्तु अपर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव-कर्म-प्राशीविष है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। 14. जदि वाणमंतरदेवकम्मासीविसे कि पिसायवाणमंतर ? एवं सम्वेसि पि अपज्जत्तगाणं / [14 प्र.] भगवन् ! यदि वाणव्यन्तरदेव-कर्म-प्राशीविष है, तो क्या पिशाच वाणव्यन्तरदेव-कर्माशीविष है, अथवा यावत् गन्धर्व वाणव्यन्तरदेव-कर्माशीविष है ? / [14 उ.] गौतम ! वे पिशाचादि सर्व वाणव्यन्तरदेव अपर्याप्तवस्था में कर्माशीविष हैं। 15. जोतिसियाणं सवेसि अपज्जतगाणं / [15] इसी प्रकार सभी ज्योतिष्कदेव भी अपर्याप्तावस्था में कर्माशीविष होते हैं / 16. जदि वेमाणियदेवकम्मासीविसे कि कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासोविसे ? कप्पातीतवेमाणियदेवकम्मासोविसे ? गोयमा ! कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे, नो कप्पातीतवेमाणियदेवकम्मासीविसे / [16 प्र.] भगवन् ! यदि वैमानिकदेव कर्माशीविष हैं तो क्या कल्पोपपन्नक वैमानिक देवकर्माशीविष है, अथवा कल्पातीत वैमानिक देव-कर्म-पाशीविष है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org