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________________ 242] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसून पभोगपरिणया, एगे मीससापरिणए 5 / अहवा तिणि पन्नोगपरिणया, एगे वोससापरिणए 6 / अहवा एगे मोससापरिणए, तिणि वीससापरिणया 7 / अहवा दो मौसापरिणया, दो बीससापरिणया 8 / अहवा तिणि मीसापरिणया, एगे बीससापरिणए / अहवेगे पयोगपरिणए एगे मीसापरिणए. दो वीससापरिणया 1; अहवेगे पयोगपरिणए, दो मोसापरिणया, एगे वोससापरिणए 2; अहवा दो पयोगपरिणया, एगे मीसापरिणए, एगे वोससापरिणए 3 / [86 प्र.] भगवन् ! चार द्रव्य क्या प्रयोग-परिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा वित्रसापरिणत होते हैं ? 89 उ.] गौतम ! वे (चार द्रव्य) (1) या तो प्रयोगपरिणत होते हैं, (2) या मिश्र-परिणत होते हैं, (3) अथवा विस्रसापरिणत होते हैं, (4) अथवा एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, तीन मिश्रपरिणत होते हैं, या (5) एक द्रव्य प्रयोग-परिणत होता है और तीन विस्रसा-परिणत होते हैं, (6) अथवा दो द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं और दो मिश्रपरिणत होते हैं, (7) या दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं और दो विस्रसारिणत होते हैं; अथवा (8) तीन द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं और एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है; (8) अथवा तीन द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है; अथवा (10) एक द्रव्य मिश्र-परिणत होता है और तीन द्रव्य विस्त्रसापरिणत होते हैं, अथवा (11) दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और दो द्रव्य विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा (12) तीन द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है, अथवा (13) एक प्रयोगपरिणत होता है, एक मिश्रपरिणत होता है और दो विसापरिणत होते हैं, अथवा (14) एक प्रयोग-परिणत होता है, दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है, अथवा (15) दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, एक मिश्रपरिणत होता है और एक वित्रसापरिणत होता है। 60. जदि पयोगपरिणया कि मणप्पयोगपरिणया 3? एवं एएणं कमेणं पंच छ सत्त जाव दस संखेज्जा प्रसंखेज्जा अणंता य दब्बा भाणियन्वा / दुयासंजोएणं, तियासंजोगेणं जाव दससंजोएणं बारससंजोएणं उवजु जिऊणं जत्थ जत्तिया संजोगा उट्ठति ते सत्वे भाणियवा। एए पुण जहा नवमसए पवेसणए भणीहामि तहा उवजु जिऊण भाणियब्वा जाव असंखेज्जा / अणंता एवं चेव, नवरं एक्कं पदं अभहियं जाव अहवा अणंता परिमंडलसंठाणपरिणता जाव अणंता प्राययसंठाणपरिणया। [60 प्र.] भगवन् ! यदि चार द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं तो क्या वे मन:प्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? [60 उ.] गौतम ! ये सब तथ्य पूर्ववत् कहने चाहिए। तथा इसी क्रम से पांच, छह, सात, आठ, नौ, दस, यावत् संख्यात, असंख्यात और अनन्त द्रव्यों के विषय में कहना चाहिए / द्विकसंयोग से, त्रिकसंयोग से, यावत दस के संयोग से, बारह के संयोग से; जहाँ जिसके जितने संयोगी भंग बनते हों, उतने सब भंग उपयोगपूर्वक कहने चाहिए। ये सभी संयोगी भंग आगे नौवें शतक के Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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