________________ 240] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दो द्रव्यों के त्रियोगसम्बन्धी मिश्रपरिणत भंग-इस प्रकार मनःप्रयोगपरिणत सम्बन्धी 504, वचनप्रयोगपरिणत सम्बन्धी 504 और कायप्रयोगपरिणत सम्बन्धी 196, यों कुल 1204 भंग प्रयोगपरिणत के होते हैं। जिस प्रकार प्रयोगपरिणत दो द्रव्यों के कुल 1204 भंग कहे गए हैं, उसी प्रकार मिश्र-परिणत दो द्रव्यों के भी कुल 1204 भंग समझने चाहिए। वित्रसा-परिणत द्रव्यों के भंग-जिस रीति से प्रयोगपरिणत दो द्रव्यों के भंग कहे गए हैं, उसी रीति से विस्रसापरिणत दो द्रव्यों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान इन पांच पदों के विविधविशेषणयुक्त पदों को लेकर असंयोगी और द्विकसंयोगी भंग भी यथायोग्य समझ लेना चाहिए।' तीन द्रव्यों के मन-वचन-काया की अपेक्षा प्रयोग-मिश्र-वित्रसापरिणत पदों के भंग-- 86. तिषिण भंते ! दवा कि पयोगपरिणता ? मीसापरिणता ? वीससापरिणता? गोयमा ! पयोगपरिणया वा, मीसापरिणया वा, वीससापरिणया वा 1 / अहवेगे पयोगपरिणए, दो मीसापरिणता 1 / अहवेगे पयोगपरिणए, दो वोससापरिणता 2 / अहवा दो पयोगपरिणया, एगे मीसापरिणए 3 / प्रहवा दो पयोगपरिणता, एगे वीससापरिणते 4 / प्रहवेगे मोसापरिणए, दो बोससापरिणता 5 / अहवा दो मीसलापरिणता, एगे वीससापरिणते 6 / अहवेगे पयोगपरिणते, एगे मोसापरिणते, एगे वोससापरिणते 7 / [८६-प्र.] भगवन् ! तीन द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा वित्रसापरिणत होते हैं ? [८६-उ.] गौतम ! तीन द्रव्य या तो प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्न-परिणत होते हैं, अथवा वित्रसापरिगत होते हैं, या एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, और दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं, या एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, और दो द्रव्य विस्त्रसा-परिणत होते हैं; अथवा दो द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं और एक द्रव्य मिश्र-परिणत होता है, अथवा दो द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं, और एक द्रव्य वित्रसापरिणत होता है; अथवा एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है और दो द्रव्य विस्रसा-परिणत होते हैं, अथवा दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं, और एक द्रव्य विस्रसा-परिणत होता है; या एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है और एक द्रव्य विस्त्रसा-परिणत होता है। 87. जदि पयोगपरिणता कि मणप्पयोगपरिणया? वइप्पयोगपरिणता? कायप्पयोगपरिणता? गोयमा ! मणप्पयोगपरिणया वा० एवं एक्कगसंयोगो, दुयसंयोगो तियसंयोगो य भाणियब्रो / [८७-प्र.] भगवन् ! यदि वे तीनों द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, तो क्या मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं अथवा वे कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? [८७-उ.] गौतम ! वे (तीन द्रव्य) या तो मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं। इस प्रकार एकसंयोगी (असंयोगो), द्विकसंयोगी और त्रिकसंयोगी भंग कहने चाहिए। 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 337-338 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org