________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१] [239 [८४-उ.] जिस प्रकार प्रयोग-परिणत के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार मिश्रपरिणत के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। 85. जदि वीससापरिणया कि वण्णपरिणया, गंधपरिणता ? | एवं वोससापरिणया वि जाव अहवेगे चउरंससंगणपरिणते, एगे प्राययसंठाणपरिणए वा / [८५-प्र ] भगवन् ! यदि दो द्रव्य विस्रसा-परिणत होते हैं, तो क्या वे वर्णरूप से परिणत होते हैं, गंधरूप से परिणत होते हैं, (अथवा यावत् संस्थानरूप से परिणत होते हैं ?) [८५-उ.] गौतम ! जिस प्रकार पहले कहा गया है, उसी प्रकार विस्रसापरिणत के विषय में कहना चाहिए, यावत् एक द्रव्य, चतुरस्त्रसंस्थानरूप से परिणत होता है, एक द्रव्य आयत संस्थान से परिणत होता है। विवेचन-दो-द्रव्यसम्बन्धी प्रयोग-मिश्र-वित्रसापरिणत पदों के मनोयोग आदि के संयोग से निष्पन्न भंग-प्रस्तत छह सत्रों (स. 80 से 85 तक) में दो द्रव्यों से सम्बन्धित विभिन्न विशेषणयुक्त मनोयोग आदि के संयोग से प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत पदों के विभिन्न भंगों का निरूपण किया गया है। प्रयोगादि तीन पदों के छह भंग-दो द्रव्यों के सम्बन्ध में प्रयोगादि तीन पदों के असंयोगी 3 भंग और द्विकसंयोगी 3 भंग, यों कुल छह भंग होते हैं। विशिष्ट-मनःप्रयोगपरिणत के पांच सौ चार भंग-सर्वप्रथम सत्यमनःप्रयोगपरिणत, असत्यमनःप्रयोगपरिणत आदि 4 पदों के असंयोगी 4 भंग और द्विकसंयोगी 6 भंग, इस प्रकार कुल 10 भंग होते हैं। फिर प्रारम्भ-सत्यमनःप्रयोग आदि छह पदों के असंयोगी 6 भंग और विकसंयोगी 15 भग होते हैं। इस प्रकार आरम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत (द्रव्यद्वय) के 6+15-21 भं इसी प्रकार अनारम्भ सत्यमनःप्रयोग आदि शेष 5 पदों के भी प्रत्येक के इक्कीस-इक्कीस भंग होते हैं। यों सत्यमनःप्रयोगपरिणत के प्रारम्भ, अनारम्भ, संरंभ, असंरंभ, समारम्भ, असमारम्भ, इन 6 पदों के साथ कुल 214 6 = 126 भंग हुए। इसी प्रकार सत्यमनःप्रयोगपरिणत की तरह असत्यमन:प्रयोगपरिणत, सत्यमषामन :प्रयोगपरिणत, असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत, इन तीन पदों के भी प्रारम्भ आदि 6 पदों के साथ प्रत्येक के पूर्ववत् एक सो छठवीस-एक सौ छब्बीस भंग होते हैं। अतः मनःप्रयोगपरिणत के सत्यमन:प्रयोगपरिणत, असत्यमनःप्रयोगपरिणत आदि विशेषणयुक्त चारों पदों के कुल 12644 = 504 भंग होते हैं। पूर्वोक्त विशेषणयुक्त वचनप्रयोगपरिणत के भो 504 भंग-जिस प्रकार मनःप्रयोगपरिणत के उपयुक्त 504 भंग होते हैं उसी प्रकार वचनप्रयोगपरिणत के भी 504 भंग होते हैं। सर्वप्रथम सत्यवचनप्रयोग के प्रारम्भसत्य आदि 6 पदों के प्रत्येक के 21-21 भंग होने से 126 भंग होते हैं / फिर असत्यवचनप्रयोग आदि शेष तीन पदों के भी प्रारम्भ आदि 6 पदों के साथ प्रत्येक के 126-126 भंग होने से कुल 126 x 4 =504 भंग होते हैं। औदारिक प्रादि कायप्रयोगपरिणत के 166 भंग-ग्रौदारिकशरीरकायप्रयोग-परिणत आदि 7 पद हैं, इनके असंयोगी 7 भंग और द्विकसंयोगी 21 भंग, यों कुल 7+21=28 भंग एक पद के होते हैं / सातों पदों के कुल 2847 = 196 भंग कायप्रयोगपरिणत के होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org