________________ 238] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अहवेगे मोसमणप्पयोगपरिणते, एगे सच्चामोसमणप्पयोगपरिणते 4 / प्रहवेगे मोसमणप्पयोगपरिणते, एगे असच्चामोसमणप्पयोगपरिणते 5 / प्रहवेगे सच्चामोसमणप्पयोगपरिणते, एगे असच्चामोसमणप्पप्रोगपरिणते 6 / [८२-प्र.] भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, तो क्या सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या असत्य-मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा सत्य मृषामनःप्रयोग-परिणत होते हैं, या असत्यामृषा-मनःप्रयोगपरिणत होते हैं ? [82-3.] गौतम ! वे (दो द्रव्य) (1-4) सत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं, यावत् असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होते हैं; (5) या उनमें से एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, अथवा (6) एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोग-परिणत होता है, और दूसरा सत्यमृषामनःप्रयोग-परिणत होता है, या (7) एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोग-परिणत होता है और दूसरा असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होता है; अथवा (8) एक द्रव्य मृषामनःप्रयोग-परिणत होता है, और दुसरा सत्यमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है: या (9) एक द्रव्य मषामनःप्रयोग-परिणत होता है और दुसरा असत्यामृषा-मनःप्रयोगपरिणत होता है अथवा (10) एक द्रव्य सत्यमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, और दूसरा असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होता है। 83. जइ सच्चमणप्योगपरिणता कि प्रारंभसच्चमणप्पयोगपरिणया जाव असमारंभसच्चमणप्पयोगपरिणता ? गोयमा! आरंभसच्चमणप्पयोगपरिणया वा जाव असमारंभसच्चमणप्पयोगपरिणया वा। प्रहवेगे प्रारंभसच्चमणप्पयोगपरिणते, एगे अणारंभसच्चमणप्पयोगपरिणते / एवं एएणं गमएणं बुयसंजो. एणं नेयव्वं / सब्वे संयोगा जत्थ जत्तिया उठेति ते भाणियव्वा जाव सम्वट्ठसिद्धग त्ति / [८३-प्र] भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) सत्यमन:प्रयोग-परिणत होते हैं तो क्या वे प्रारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं या अनारम्भसत्यमनःप्रयोग-परिणत होते हैं, अथवा संरम्भ (सारम्भ) सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या असंरम्भ (असारम्भ) सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा समारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं या असमारम्भसत्यमनःप्रयोग परिणत होते हैं ? [८३-उ.] गौतम ! वे दो द्रव्य (1-6) भारम्भसत्यमनःप्रयोग-परिणत होते हैं, अथवा यावत् असमारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं; अथवा एक द्रव्य प्रारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा अनारम्भसत्य-मनःप्रयोग-परिणत होता है। इसी प्रकार इस गम (पाठ) के अनुसार द्विकसंयोगी भंग करने चाहिए / जहाँ जितने भी द्विकसंयोग हो सकें, उतने सभी यहाँ कहने चाहिए यावत् सर्वार्थसिद्ध बैमानिक देव-पर्यन्त कहने चाहिए / 84. जदि मोसापरिणता कि मणमीसापरिणता ? एवं मीसापरिणया वि। [८४-प्र.] भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) मिश्रपरिणत होते हैं तो मनोमिश्रपरिणत होते हैं ?, (इत्यादि पूर्ववत् प्रयोगपरिणत वाले प्रश्नों की तरह यहाँ भी सभी प्रश्न उपस्थित करने चाहिए / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org