________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१] [226 [3] एवं जाव वणस्सइकाइयाणं चउक्कयो मेदो। [56-3] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक सभी के चार-चार भेद (सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त) के विषय में (पूर्ववत्) कथन करना चाहिए / 60. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं दुयम्रो भेदो-पज्जत्तगा य, अपज्जत्तगा य / [60] इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के दो-दो भेद -पर्याप्तक और अपर्याप्तक (से सम्बन्धित प्रौदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत एक द्रव्य) के विषय में कहना चाहिए। 61. जदि पंचिदियोरालियसरीरकायप्पयोगपरिणए कि तिरिक्खजोणियचिदियनोरालियसरीरकायप्पप्रोगपरिणए ? मणुस्सपंचिदिय जाव परिणए ? गोयमा ! तिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा, मणुस्सपंचिदिय जाव परिणए वा / [६१-प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-ग्रौदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा मनुष्यपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? [61 उ.] गौतम ! या तो वह तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर-काय-प्रयोगपरिणत होता है, अथवा वह मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है / 62. जइ तिरिक्ख जोणिय जाव परिणए कि जलचरतिरिक्खजोणिय जाव परिपए वा? थलचर० ? खहचर० ? एवं चउक्कानो मेदो जाव खहचराणं / - [६२-प्र.) भगवन् ! यदि एक द्रव्य, तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर-काय-प्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह जलचर-तियंञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-ौदारिकशरीर-काय-प्रयोग-परिणत होता है, स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर-काय-प्रयोगपरिणत होता है, अथवा खेचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है ? [62-3.] गौतम ! वह जलचर, स्थलचर और खेचर, तीनों प्रकार के तिर्यञ्चपंचेन्द्रियऔदारिकशरीर-कायप्रयोग से परिणत होता है, अतः यावत् खेचरों तक पूर्ववत् प्रत्येक के चार-चार भेदों (सम्मूच्छिम, गर्भज, पर्याप्तक और अपर्याप्तक) (के औदारिकशरीर काय प्रयोग-परिणत) के विषय में कहना चाहिए / 63. जदि मणुस्सपंचिदिय जाव परिणए कि सम्मुच्छिममणुस्साँचदिय जाव परिणए ? गन्भवतियमणुस्स जाव परिणए? गोयमा ! दोसु वि। [६३-प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, मनुष्यपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह सम्मूच्छिममनुष्य-पंचेन्द्रिय-ग्रौदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, अथवा गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org