________________ 230] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [६३-उ.] गौतम ! वह दोनों प्रकार के (सम्मूच्छिम अथवा गर्भज) मनुष्यों के औदारिकशरीर-कायप्रयोग से परिणत होता है। 64. जदि गम्भवक्कंतियमणुस्स जाव परिणए कि पज्जत्तगम्भवतिय जाव परिणए ? अपज्जत्तगम्भवक्कंतियमणुस्सपंचिदियोरालियसरीरकायप्पयोगपरिणए ? गोयमा ! पज्जत्तगम्भवक्कंतिय जाव परिणए वा, अपज्जतगमवक्फतिय जाव परिणए / 1 / [६४-प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रौदारिक-शरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह पर्याप्त-गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, अथवा अपर्याप्त-गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है ? [६४-उ.] गौतम ! वह पर्याप्त-गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रिय-ग्रौदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, अथवा अपर्याप्त-गर्भजमनुष्यपंचेन्द्रिय-ौदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है / 65. जदि पोरालियमोसासरीरकायप्पयोगपरिणए कि एगिदियोरालियमोसासरीरकायप्पप्रोगपरिणए ? बेइंदिय जाव परिणए जाव पंचेंदियोरालिय जाव परिणए ? ___ गोयमा ! एगिदियोरालिय एवं जहा पोरालियसरीरकायप्पयोगपरिणएणं पालावगो भणियो तहा ओरालियमोसासरीरकायप्पयोगपरिणएण वि पालावगो भाणियव्यो, नवरं बायरवाउबकाइयगम्भवक्कतियपंचिदियतिरिक्खजोणिय-गम्भवक्कंतियमणुस्साण य एएसिणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं, सेसाणं अपज्जत्तगाणं / 2 / [६५-प्र.] यदि एक द्रव्य, औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह एकेन्द्रिय-औदारिकमिश्र-शरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, द्वीन्द्रिय-औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-औदारिक-मिश्रशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है ? [65 उ.] गौतम ! वह एकेन्द्रिय-प्रौदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोग परिणत होता है, अथवा द्वीन्द्रिय-औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-यौदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है। जिस प्रकार पहले औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत के आलापक कहे हैं, उसी प्रकार औदारिकमिथ-कायप्रयोग-परिणत के भी पालापक कहने चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि बादरवायुकायिक, गर्भज पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक और गर्भज मनुष्यों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक के विषय में और शेष सभी जीवों के अपर्याप्तक के विषय में कहना चाहिए। 66. जदि वेउब्वियसरीरकायप्पयोगपरिणए कि एगिदियवेउब्वियसरीरकायप्पनोगपरिणए जाव पंचिदियवेउब्वियसरोर जाव परिणए ? गोयमा ! एगिदिय जाव परिणए वा पंचिदिय जाव परिणए। [66 प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, वैक्रियशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर-प्रयोग-परिणत होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org