________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१ ] [225 एवं जहा पष्णवणाए' तहेव निरवसेसं जाव जे संठाणम्रो प्रायतसंठाणपरिणया ते वण्णमो कालवण्ण- . परिणया वि जाव लुक्खफासपरिणया वि। [48 प्र.] भगवन् ! विस्रसा-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [48 उ.] गौतम ! पांच प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं-वर्णपरिणत, गन्धपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थानपरिणत / जो पुद्गल वर्ण-परिणत हैं, वे पांच प्रकार के कहे गए हैं। यथा--काले वर्ण के रूप में परिणत यावत् शुक्ल वर्ण के रूप में परिणत पुद्गल / जो गन्धपरिणत पुद्गल हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-सुरभिगन्धपरिणत और दुरभिगन्धपरिणत पुद्गल / इस प्रकार प्रागे का सारा वर्णन जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र (के प्रथम पद) में किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी करना चाहिए; यावत् जो पुद्गल संस्थान से आयतसंस्थान-परिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण के रूप में भी परिणत हैं, यावत् (स्पर्श से) रूक्ष-स्पर्शरूप में भी परिणत हैं। विवेचन--विसापरिणत पुद्गलों के भेद-प्रभेदों का निर्देश-प्रस्तुत सूत्र में विस्त्रसापरिणत (स्वभाव से परिणाम को प्राप्त) पुदगलों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से तथा इन वर्गादि के परस्पर मिश्र होने पर विकल्प की विवक्षा से प्रज्ञापनासूत्र के अतिदेश-पूर्वक अनेक भेदप्रभेदों का निर्देश किया गया है / मन-वचन-काया की अपेक्षा विभिन्न प्रकार से प्रयोग-मिश्र-विरसा से एक द्रव्य के परिगमन की प्ररूपरणा-- . 46. एगे भंते ! दवे किं पयोगपरिणए ? मीसापरिणए ? बीससापरिणए ? गोयमा ! पयोगपरिणए वा, मीसापरिणए वा, वीससापरिणए वा / [49 प्र.] गौतम ! एक द्रव्य क्या प्रयोग-परिणत होता है, मिश्रपरिणत होता है अथवा विस्रसा-परिणत होता है ? [46 उ.] गौतम ! एक द्रव्य, प्रयोग-परिणत होता है, अथवा मिश्रपरिणत होता है, अथवा बिस्रसा-परिणत होता है। 50. जदि पयोगपरिणए कि मणप्पयोगपरिणए ? वइप्पयोगपरिणए ? कायप्पयोगपरिणए ? गोयमा ! मणप्पयोगपरिणए वा, वइपयोगपरिणए वा, कायप्पयोगपरिणए वा। [50 प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य प्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह मनःप्रयोगपरिणत होता है, वचन-प्रयोग-परिणत होता है अथवा कायप्रयोग-परिणत होता है ? 1. प्रज्ञापनासूत्र प्रथमपद सूत्र 10 [1-2] (महा. विद्या.) 2. (क) बियापण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 326 (ख) प्रज्ञापनासूत्र, प्रथमपद, सूत्र 10 [1-2] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org