________________ 216] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 24. एवं एतेणं अभिलावेणं दुएणं भेदेणं पिसाया य जाव गंधवा, चंदा जाव ताराविमाणा, सोहम्मकप्पोवगा जाव प्रचुमो, हिटिमहिटिमोविज्जकापातीत जाव उवरिमउवरिमगेविज्ज०, विजयप्रणुत्तरो० जाव अपराजिय० / [24] इसी प्रकार इसी अभिलाप से पिशाचों से लेकर यावत् गन्धर्वो तक (आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देवों के प्रयोग-परिणत पुद्गलों) के तथा चन्द्र से लेकर तारा-पर्यन्त (पांच प्रकार के ज्योतिष्कदेवों के प्रयोग-परिणत पुद्गलों) के एवं सौधर्मकल्पोपपन्नक से यावत् अच्युतकल्पोपपन्नक तक के और प्रधस्तन-अधस्तन ग्रंवेयककल्पातीत से लेकर उपरितन-उपरितन ग्रेवेयक कल्पातीत देव प्रयोग-परिणत पुद्गलों के, एवं विजय-अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत से यावत् अपराजित-अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत देव-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रत्येक के पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो-दो भेद कहने चाहिए। 25. लव्वदृसिद्धकप्पातीय० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-पज्जत्तगसव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरो० अपज्जत्तगसवट जाव परिणया वि / 2 दंडगा। [25 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीतदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के कितने प्रकार हैं ? [25 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-पर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीतदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक सर्वार्थ सिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीतदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गल / दूसरा दण्डक पूर्ण हुप्रा। तृतीय दण्डक 26. जे अपज्जत्तासुहमपुढवीकाइयएगिदियपयोगपरिणया से पोरालिय-तेया-कम्मगसरीरप्पयोगपरिणया, जे पज्जत्तासुहुम० जाव परिणया ते पोरालिय-तेया-कम्मगसरीरप्पयोगपरिणया। एवं जाव चरिदिया पज्जत्ता। नवरं जे पज्जत्तगबादरवाउकाइयएगिदियपयोगपरिणया ते पोरालियवे उच्चिय-तेया-कम्मसरीर जाव परिणता। सेसं तं चेव / / [26] जो पुद्गल अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकाय-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे औदारिक, तेजस और कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं / जो पुद्गल पर्याप्तक-सूक्ष्म-पथ्वीकाय-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे भी औदारिक, तैजस और कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियपर्याप्तक तक के (प्रयोग-परिणत पुद्गलों के विषय में) जानना चाहिए। परन्त विशेष इतना है कि जो पदगल पर्याप्त-बादर-वायुकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं, वे औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं / (क्योंकि वायुकाय में वैक्रिय शरीर भी पाया जाता है / ) शेष सब पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार जानना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org