________________ कहे गए हैं। अष्टभ शतक : उद्देशक-१] [215 इसी प्रकार गर्भज-जलचरसम्बन्धी प्रयोगपरिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में जान लेना चाहिए। [2] सम्मुच्छिमचउप्पदथलचर० / एवं चेव / एवं गम्भवक्कंतिया य / * [21-2] इसी प्रकार सम्मूच्छिम चतुष्पदस्थलचरसम्बन्धी प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में तथा गर्भज चतुष्पदस्थलचर सम्बन्धी प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में भी जानना चाहिए। [3] एवं जाव सम्मुच्छिमखहयर० गब्भवतिया य एक्केके पज्जत्तगा य अपज्जतगा य भाणियवा। [21-3] इसी प्रकार यावत् सम्मच्छिम खेचर और गर्भज खेचर से सम्बन्धित प्रयोगपरिणत पुद्गलों के प्रत्येक के पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो-दो भेद कहने चाहिए। 22. [1] सम्मुच्छिममणुस्सपंचिदिय० पुच्छा। गोयमा! एगविहा पनत्ता-अपज्जत्तगा चेव / [22-1 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के [22-1 उ.] गौतम ! वे एक प्रकार के कहे गए हैं / यथा--अपर्याप्तक-सम्मूच्छिम मनुष्यपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / [2] गम्भवतियमणुस्सपंचिदिय० पुच्छा / गोयमा! दुविहा पण्णता, तं जहा-पज्जत्तगगम्भवक्कंतिया वि, अपज्जत्तगगम्भवतिया वि। [22-2 प्र.] भगवन् ! गर्भज मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [22-2 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार–पर्याप्तक-गर्भज-मनुष्यपंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक-गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / 23. [1] असुरकुमार भवणवासिदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा---पज्जत्तमप्रसुरकुमार० प्रपज्जत्तगप्रसुर० / [23.1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार-भवनवासीदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? [23-1 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं / यथा--पर्याप्तक असुरकुमार-भवनबासीदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक-असुरकुमार-भवनवासीदेव-प्रयोग-परिणत पुद्गल / [2] एवं जाव थणियकुमारा पज्जत्तगा अपज्जत्तमा य। [23-2] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार भवनवासीदेव तक प्रयोग-परिणत पुद्गलों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो-दो भेद कहने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org