________________ 214] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 16. [1] बंदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा / गोयमा! दुविहा पण्णता, तं जहा--पज्जत्तगदियपयोगपरिणया य, अपज्जत्तग जाव परिणया य / [19-1 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [16-1 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। जैसे कि-पर्याप्तक द्वीन्द्रिय-प्रयोगपरिणत पुद्गल और अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / [2] एवं तेइंदिया वि। [16-2] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में भी जान लेना चाहिए। [3] एवं चरिदिया वि। [19-3] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार के विषय में भी समझ लेना चाहिए। 20. [1] रयणप्पभापुढविनेरइय० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जतगरयणप्पभापुढवि जाव परिणया य, अपज्जत्तग जाव परिणया य। [20-1 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? 20-1 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार–पर्याप्तक रत्नप्रभापथ्वी नैरयिक-प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक रत्नप्रभा-नरयिक-प्रयोग-परिणत पुद्गल / [2] एवं जाव आहेसत्तमा। [20-2] इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमीपृथ्वी नरयिक-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार (प्रत्येक के दो-दो) के विषय में कहना चाहिए। 21. [1] सम्मुच्छिमजलचरतिरिक्ख० पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-पज्जत्तग० अपज्जतग० / एवं गमवक्कतिया वि। [21-1 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम-जलचर-तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? 21-1 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। जैसे कि-पर्याप्तक सम्मूच्छिम जलचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक सम्मूच्छिम-जलचर-तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org