________________ 208] [ व्याल्याप्रज्ञप्तिसूत्र मिश्रपरिणत पुद्गलों के दो रूप---(१) प्रयोग-परिणाम को छोड़े बिना स्वभाव से (वित्रसा) परिणामान्तर को प्राप्त मृतकलेवर आदि पुद्गल मिश्रपरिणत कहलाते हैं; अथवा (2) विस्रसा (स्वभाव) से परिणत औदारिक आदि वर्गणाएँ, जब जीव के व्यापार (प्रयोग) से औदारिक आदि शरीररूप में परिणत होती हैं, तब वे मिश्रपरिणत कहलाती हैं, जब कि उनमें प्रयोग और विस्रसा, दोनों परिणामों की विवक्षा की गई हो। विस्रसापरिणाम को छोड़कर अकेले प्रयोग-परिणामों की विवक्षा हो, तब उक्त वर्गणाएँ प्रयोग-परिणत ही कहलाएँगी। नौ दण्डकों द्वारा प्रयोग-परिणत पुद्गलों का निरूपणप्रथम दण्डक 4. पयोगपरिणता णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णता? गोयमा ! पंचविहा पण्णता, तं जहा-एगिदियपयोगपरिणता बेइंदियफ्योगपरिणता जाव चिदियपयोगपरिणता। [४-प्र.] भगवन् ! प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [४-उ.] गौतम ! (प्रयोग-परिणत पुद्गल) पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-- (1) एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत, (2) द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत, (3) त्रीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत, (4) चतुरिन्द्रिय-प्रयोग-परिणत, (5) पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / 5. एगिदियपयोगपरिणता णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? गोयमा ! पंचविहा, तं जहा–पुढविक्काइयएंगिदियपयोगपरिणता जाव वणस्सतिकाइयएगिदियपयोगपरिणता। [५-प्र.) भगवन् ! एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [५-उ.] गौतम ! (एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल, यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत पुद्गल / 6. [1] पुढविक्काइयएगिदियपयोगपरिणता णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविक्काइयएगिदियफ्योगपरिणता य बादरपुढविक्काइयएगिदियपयोगपरिणता य / [6-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [6-1 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, जैसे कि-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक एकेन्द्रियप्रयोग-परिणत पुद्गल और बादरपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / 1. भगवतीसूत्र प्र. वृत्ति, पत्रांक 328 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org