________________ अदुमं सयं : अष्टम शतक अष्टम शतक को संग्रहणी गाथा 1. पोग्गल 1 प्राप्तीविस 2 रुख 3 किरिय 4 श्राजीव 5 फासुगमदत्त 6-7 / पडिणीय 8 बंध 6 पाराहणा य 10 बस अट्टमम्मि सते // 1 // [1. गाथार्थ] 1. पुद्गल, 2. आशीविष, 3. वृक्ष, 4. क्रिया, 5. आजीव, 6. प्रासुक, 7. अदत्त, 8. प्रत्यनीक, 6. बन्ध और 10. आराधना, आठवें शतक में ये दस उद्देशक हैं। पढमो उद्देसओ : 'पोग्गल' प्रथम उद्देशक : 'पुद्गल' पुद्गलपरिणामों के तीन प्रकारों का निरूपण--- 2. रायगिहे जाव एवं वदासि-- [२-उपोद्धात] राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा 3. कतिविहा णं भंते ! पोग्गला पण्णता? गोयमा ! तिविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा--पयोगपरिणता मीससापरिणता वीससापरिणता। [३-प्र.} भगवन् ! पुद्गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [३-उ.] गौतम ! पुद्गल तीन प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) प्रयोग-परिणत, (2) मिश्र-परिणत और (3) विस्रसा-परिणत / / विवेचन--पुदगल परिणामों के तीन प्रकारों का निरूपण-प्रस्तुत सूत्र में परिणाम (परिणति) की दृष्टि से पुद्गल के तीन प्रकारों का निरूपण किया गया है। परिणामों को दृष्टि से तीनों पुद्गलों का स्वरूप-(१) प्रयोग-परिणत-जीव के व्यापार (क्रिया) से शरीर आदि के रूप में परिणत पुद्गल, (2) मिश्र-परिणत--प्रयोग और विस्रसा (स्वभाव) इन दोनों द्वारा परिणत पुद्गल और (3) विखसा-परिणत-विरसा यानी स्वभाव से परिणत पुद्गल / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org