________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१] [209 [2] प्राउक्काइयएगिदियपयोगपरिणता एवं चेव / [6-2] इसी प्रकार अप्कायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल भी दो प्रकार के (सूक्ष्म और बादर-रूप से) कहने चाहिए / [3] एवं दुयनो मेदो जाव वणस्सतिकाइया य / [6-3] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल तक के प्रत्येक के दो दो भेद (सूक्ष्म पोर बादर-रूप से) कहने चाहिए। 7. [1] बेइंदियपयोगपरिणताणं पुच्छा / गोयमा! अणेगविहा पण्णता / [7-1 प्र.] भगवन् ! अब द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल के प्रकारों के विषय में पृच्छा है। [7-1 उ.] गौतम ! वे (द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) अनेक प्रकार के कहे गए हैं। [2] एवं तेइंदिय-चरिदियपयोगपरिणता वि। [7-2] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों और चतुरिन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के प्रकार (अनेक विध) के विषय में जानना चाहिए। 8. पंचिदियपयोगपरिणताणं पुच्छा। गोयमा ! चतुब्बिहा पण्णत्ता, तं जहानेरतियपंचिदियपयोगपरिणता, तिरिक्ख०, एवं मणुस्स०, देवचिदियः / [८-प्र.] अब (गौतमस्वामी की) पृच्छा पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के (प्रकार के) विषय में है। [८-उ.] गौतम ! (पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-(१) नारक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग परिणत पुद्गल, (2) तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल, (3) मनुष्य-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और (4) देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / 6. नेरदयचिदियपयोग० पुच्छा / ___ गोयमा! सत्तविहा पण्णता, तं जहा-रतणप्पभापुढविनेरइयचिदियपयोगपरिणता वि जाव प्रसत्तमपुढविनेरइयचिवियफ्योगपरिणता वि। [९-प्र.] (सर्वप्रथम) नरयिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के (प्रकार के) विषय में (गौतमस्वामी की) पृच्छा है। [E-उ.] गौतम ! (नैरयिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत-पुद्गल) सात प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं-रत्नप्रभापृथ्वी-नरयिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल यावत् अध सप्तमा (तमस्तमा)पृथ्वी-नैरयिक-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org