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________________ सप्तम शतक : उद्देशक-१०। [203 हे कालोदायिन् ! जो पुरुष अग्निकाय को जलाता है, वह पुरुष महाकर्म वाला आदि है और जो पुरुष अग्निकाय को बुझाता है, वह अल्पकर्म वाला आदि है। विवेचन-अग्निकाय को जलाने और बुझाने वालों में महाकर्म प्रादि और अल्पकर्म प्रादि से संयुक्त कौन और क्यों?—प्रस्तुत सुत्र (16) में कालोदायी द्वारा पूछे गए पूर्वोक्त प्रश्न का भगवान् द्वारा दिया गया सयुक्तिक समाधान अंकित है / / अग्नि जलाने वाला महाकर्म प्रादि से युक्त क्यों ?--अग्नि जलाने से बहुत-से अग्निकायिक जीवों की उत्पत्ति होती है, उनमें से कुछ जीवों का विनाश भी होता है / अग्नि जलाने वाला पुरुष अग्निकाय के अतिरिक्त अन्य सभी कायों का विनाश (महारम्भ) करता है। इसलिए अग्नि जलाने वाला पुरुष ज्ञानावरणीय आदि महाकर्म उपार्जन करता है, दाहरूप महाक्रिया करता है, कर्मबन्ध का हेतुभूत महा-आश्रव करता है और जीवों को महावेदना उत्पन्न करता है; जबकि अग्नि बुझाने वाला पुरुष एक अग्निकाय के अतिरिक्त अन्य सब कायों का अल्प प्रारम्भ करता है / इसलिए वह जलाने वाले पुरुष की अपेक्षा अल्प-कर्म, अल्प-क्रिया, अल्प-पाश्रव और अल्प-वेदना से युक्त होता है।' प्रकाश और ताय देने वाले अचित्त प्रकाशमान पुद्गलों को प्ररूपरणा-- 20. अस्थि णं भंते ! अचित्ता वि पोगला प्रोभासेंति उज्जोवेति तवेति पभार्सेति ? हंता, अस्थि / [20] भगवन् ! क्या अचित्त पुद्गल भी अवभासित (प्रकाशयुक्त) होते (करते) हैं, वे वस्तुओं को उद्योतित करते हैं, ताप करते हैं (या स्वयं तपते) हैं और प्रकाश करते हैं ? [20 उ.] हाँ कालोदायिन् ! अचित्त पुद्गल भी यावत् प्रकाश करते हैं / 21. कतरे णं भंते ! ते अचित्ता पोग्गला प्रोभासंति जाव पभासंति ? __कालोदाई ! कुद्धस्स प्रणगारस्स तेयलेस्सा निसट्टा समाणो दूरं गंता दूरं निपतति, देसं गता देसं निपतति, जहि हि च णं सा निपतति तहि तहि च गं ते अचित्ता वि पोग्गला प्रोभासेंति जाव पभाति / एते णं कालोदायी ! ते अचित्ता वि पोग्गला प्रोभासेंति जाव पभाति / [21 प्र.] भगवन् ! अचित्त होते हुए भी कौन-से पुद्गल अवभासित होते या करते हैं, यावत् प्रकाश करते हैं ? [21 उ.] कालोदायिन् ! क्रुद्ध (कुपित) अनगार की निकली हुई तेजोलेश्या दूर जाकर उस देश में गिरती है, जाने योग्य देश (स्थल) में जाकर उस देश में गिरती है। जहाँ वह गिरती है, वहाँ अचित्त पुद्गल भी अवभासित (प्रकाशयुक्त) होते या करते हैं यावत् प्रकाश करते हैं / विवेचन--प्रकाश और ताप देने वाले प्रचित्त प्रकाशमान पुद्गलों की प्ररूपणा प्रस्तुत दो सूत्रों में स्वयं प्रकाशमान अचित्त प्रकाशक, तापकर्ता एवं उद्योतक पुद्गलों की प्ररूपणा की गई है। 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 327 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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