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________________ सप्तम शतक : उद्देशक-९ ] [ 193 दुष्कृत्यों के लिए पश्चात्ताप करता है, आलोचन, प्रतिक्रमण करके शुद्ध हो कर समाधिपूर्वक मरता है, वही स्वर्ग में जाता है। वरुण को देवलोक में और उसके मित्र की मनुष्यलोक में उत्पत्ति और अन्त में दोनों की महाविदेह में सिद्धि का निरूपरण 21. वरुणे णं भंते ! नागनत्तुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गते ? कहि उववन्ने ? ___ गोयमा ! सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमा ठिती पण्णत्ता। तत्थ गं वरुणस्य वि देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमा ठिती पण्णत्ता। [२१-प्र.] भगवन् वरुण नागनत्तुआ मृत्यु के समय में कालधर्म पा कर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? [२१-उ. गौतम ! वह सौधर्मकल्प (देवलोक) में अरुणाभ नामक विमान में देवरूप में उत्पन्न हुअा है / उस देवलोक में कतिपय देवों की चार पल्योपम की स्थिति (मायु) कही गई है / अतः वहाँ वरुण-देव की स्थिति भी चार पल्योपम की है। 22. से णं भंते ! वरुण देवे तानो देवलोगातो पाउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं० ? जाब महाविदेहे वासे सिन्झिहिति जाब अंतं काहिति / / [२२-प्र.] भगवन् ! वह वरुण देव उस देवलोक से आयु-क्षय होने पर, भव-क्षय होने पर तथा स्थिति-क्षय होने पर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? [२२-उ.] गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म ले कर सिद्ध होगा, यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा। 23. वरुणस्स णं भंते जागणतयस्स पियबालवयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गते ? कहि उववन्ने ? गोयमा ! सुकुले पच्चायाते। [२३-प्र. भगवन् ! बरुण नागनत्तुमा का प्रिय बालमित्र काल के अवसर पर कालधर्म पा कर कहाँ गया?, कहाँ उत्पन्न हुआ ? [२३-उ ] गौतम ! वह सुकुल में (मनुष्यलोक में अच्छे कुल में) उत्पन्न हुआ है। 24. से गं भंते ! ततोहितो प्रणतरं उवट्टित्ता कहि गच्छिहिति ? कहि उवज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति / --. 1. (क) वियाहपपत्तिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. 307 का टिप्पण (ख) जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास भा-१, पृ. 203 (ग) भगवद्गीता अ. 2, श्लो. 32, 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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