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________________ 186 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चिट्ठति, एवं खलु तप्रो इंदा संगाम संगामेति, तं जहा-देविदे मणुइंदे असुरिंदे य / एगहत्यिणा विणं पभू कूणिए रामा जइत्तए तहेव जाव दिसो दिसि पडिसेहेत्था / [15] तदनन्तर रथमूसल-संग्राम उपस्थित हुया जान कर कुणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों (सेवकों) को बुलाया। इसके बाद का सारा वर्णन महाशिलाकण्टक की तरह यहाँ कहना चाहिए / इतना विशेष है कि यहाँ ‘भूतानन्द' नामक हस्तिराज (पदहस्ती) है / यावत वह कणिक राजा रथमूसलसंग्राम में उतरा। उसके आगे देवेन्द्र देवराज शक्र है, यावत् पूर्ववत् सारा वर्णन कहना चाहिए। उसके पोछे असुरेन्द्र असुरराज चमर लोह के बने हुए एक महान् किठिन (बांसनिर्मित तापस पात्र) जैसे कवच की वि कुर्वणा करके खड़ा है। इस प्रकार तीन इन्द्र संग्राम करने के लिए प्रवृत्त हुए हैं / यथा-देवेन्द्र (शक), मनुजेन्द्र (कणिक) और असुरेन्द्र (चमर)। अब क्रूणिक केवल एक हाथी से सारी शत्रु-सेना को पराजित करने में समर्थ है / यावत् पहले कहे अनुसार उसने शत्रु राजाओं (की सेना) को दसों दिशाओं में भगा दिया। 16. से केणढणं भंते ! एवं बुच्चति 'रहमुसले संगामे रहमसले संगामे ? गोयमा ! रहमुसले णं संगामे वट्टमाणे एगे रहे प्रणासए असारहिए अणारोहए समुसले महताजणक्खयं जणवहं जणप्पमई जणसंवट्टकप्पं रुहिरकद्दमं करेमाणे सब्बतो समंता परिधाविस्था; से तेण?णं जाव रहमुसले संगामे / ___ [16 प्र.] भगवन् ! इस 'रथमूसलसंग्राम' को रथमूसलसंग्राम क्यों कहा जाता है ? [16 उ ] गौतम ! जिस समय रथमूसलसंग्राम हो रहा था, उस समय अश्वरहित, सारथिरहित और योद्धाओं से रहित एक रथ केवल मूसलसहित, अत्यन्त जनसंहार, जनवध, जन-प्रमर्दन और जनप्रलय (संवर्तक) के समान रक्त का कीचड़ करता हुआ चारों ओर दौड़ता था। इसी कारण से उस संग्राम को 'रथमूसलसंग्राम' यावत् कहा गया है। 17. रहमुसले णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कति जणसयसाहसीनो वहियाप्रो ? गोयमा ! छण्णउति जणसयसाहस्सीनो बहियाप्रो। [17 प्र.] भगवन् ! जब रथमूसलसंग्राम हो रहा था, तब उसमें कितने लाख मनुष्य मारे गए? [17 उ.] गौतम ! रथमूसलसंग्राम में छियानवे लाख मनुष्य मारे गए। 18. ते णं भंते ! मणुया निस्सीला जाव (सु. 13) उववन्ना ? गोयमा ! तत्थ णं दस साहस्सोमो एगाए मच्छियाए कुच्छिसि उववन्नामो, एगे देवलोगेसु उववन्ने, एगे सुकुले पच्चायाते, अवसेसा प्रोसन्नं नरग-तिरिक्खजोणिएसु उववन्ना / [18 प्र.] भगवन् ! निःशील (शीलरहित) यावत् वे मनुष्य मृत्यु के समय मरकर कहाँ गए, कहाँ उत्पन्न हुए? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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