________________ 184] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूब सेनासहित बुलाया / वे सब ससैन्य एकत्रित हुए। दोनों ओर की सेनाएँ युद्धभूमि में प्रा डटी / घोर संग्राम शुरू हुआ। चेटक राजा का ऐसा नियम था कि वे दिन में एक ही वार एक ही बाण छोड़ते, और उनका छोड़ा हुआ बाण कभी निष्फल नहीं जाता था। पहले दिन कणिक का भाई कालकुमार सेनापति बनकर युद्ध करने लगा, किन्तु चेटक राजा के एक ही बाण से वह मारा गया। इससे कृणिक को सेना भाग गई। इस प्रकार दस दिन में चेटकराजा ने कालकुमार आदि दसों भाइयों को मार गिराया / ग्यारहवें दिन कूणिक की बारी थी। कणिक ने सोचा-'मैं भी दसों भाइयों की तरह चेटकराजा ने आगे टिक न सकूगा / मुझे भी वे एक ही बाण में मार डालेंगे।' अतः उसने तीन दिन तक युद्ध स्थगित रखकर चेटकराजा को जीतने के लिए अष्टमतप (तेला) करके देवाराधना की / अपने पूर्वभव के मित्र देवों का स्मरण किया, जिससे शक्रेन्द्र और चमरेन्द्र दोनों उसकी सहायता के लिए आए। शवेन्द्र ने कूणिक से कहा-चेटकराजा परम श्रावक है, इसलिए उसे मैं मारूंगा नहीं, किन्तु तेरी रक्षा करूगा। अतः शक्रेन्द्र ने कणिक की रक्षा करने के लिए वज्र सरीखे अभेद्य कवत्र की विकुर्वणा की और चमरेन्द्र ने महाशिलाकण्टक और रथ मूसल, इन दो संग्रामों की विकुर्वणा की। इन दोनों इन्द्रों की सहायता के कारण कणिक की शक्ति बढ़ गयी। वास्तव में इन्द्रों की सहायता से ही महाशिलाकण्टक संग्राम में कूणिक की विजय हुई, अन्यथा, विजय में संदेह था।' महाशिलाकण्टक संग्राम के स्वरूप, उसमें पानवविनाश और उनकी मरणोत्तरगति का निरूपण 11. से केण?णं भंते ! एवं बुच्चति 'महासिलाकंटए संगामे महासिलाकंटए संगा' ! गोयमा ! महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे जे तत्थ पासे वा हत्थी वा जोहे वा सारही वा तणेण वा कोण वा पत्तेण वा सक्कराए वा अभिहम्मति सव्वे से जाणति 'महासिलाए अहं अभिहते महासिलाए अहं अभिहते'; से तेण?णं गोयमा ! महासिलाकंटए संगामे महासिलाकंटए संगामे / [11 प्र.] भगवन् ! इस 'महाशिलाकण्टक' संग्राम को महाशिलाकण्टक संग्राम क्यों कहा जाता है ? [11 उ.] गौतम ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम हो रहा था, तब उस संग्राम में जो भो घोड़ा, हाथी, योद्धा या सारथि आदि तृण से, काष्ठ से, पत्ते से या कंकर आदि से पाहत होते, वे सब ऐसा अनुभव करते थे कि हम महाशिला (के प्रहार) से मारे गए हैं। (अर्थात्-महाशिला हमारे ऊपर आ पड़ी है।) हे गौतम ! इस कारण से इस संग्राम को महाशिलाकण्टक संग्राम कहा जाता है। 12. महासिलाकंटए णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कति जणसतसाहस्सीग्रो वहियाप्रो ? गोयमा ! चउरासोति जणसतसाहस्सीओ बहियारो। [12 प्र.] भगवन् ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम हो रहा था, तब उसमें कितने लाख मनुष्य मारे गए? 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृति, पत्रांक 317 (ख) प्रौपपातिक सूत्र, पत्रांक 66 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org