SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 784
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम शतक : उद्देशक-९] [ 183 10. तए णं से कूणिए राया महासिलाकंटक संगाम संगामेमाणे नव मल्लई, नव लेच्छा, कासी कोसलगा प्रद्वारस वि गणरायाणो हयमहियपवरबीरधातियविवडियचिधधय-पडागे किच्छप्पाणगते दिसो दिसि पडिसेहेत्था / [10] तत्पश्चात उस कणिक राजा ने महाशिलाकण्टक संग्राम करते हए, नौ मल्लको और नौ लेच्छकी; जो काशी और कोशल देश के अठारह गणराजा थे, उनके प्रवरवीर योद्धाओं को नष्ट किया, घायल किया और मार डाला / उनकी चिह्नांकित ध्वजा-पताकाएँ गिरा दीं। उन बीरों के प्राण संकट में पड़ गए, अतः उन्हें युद्धस्थल से दसों दिशाओं में भगा दिया (तितर-बितर कर दिया)। विवेचन-महाशिलाकण्टक संग्राम के लिए कणिकराजा की तैयारी और अठारह गणराजाओं पर विजय का वर्णन-प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू-६ से 10 तक) में कणिकराजा को संग्राम के लिए तैयारी से लेकर अठारह गणराजाओं पर विजय का वर्णन है। महाशिलाकण्टक संग्राम उपस्थित होने का कारण यहाँ मूलपाठ में इस संग्राम के उपस्थित होने का कारण नहीं दिया है, किन्तु वृत्तिकार ने 'औपपातिक' 'निरयावलिका' आदि सूत्रों में समागत वर्णन के अनुसार संक्षेप में इस युद्ध का कारण इस प्रकार दिया है -चम्पानगरो में कूणिक राजा राज्य करता था / हल्ल और विहल्ल नाम के उसके दो छोटे भाई थे। उन दोनों को उनके पिता श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में उनके हिस्से का एक से चालक गन्धहस्ती और अठारहसरा वंकचूड़ हार दिया था। ये दोनों भाई प्रतिदिन से चानक गन्धहस्ती पर बैठ कर गंगातट पर जल क्रीड़ा और मनोरंजन करते थे / उनके इस आमोद-प्रमोद को देखकर कणिक की रानी पद्मावती को अत्यन्त ईर्ष्या हुई। उसने कणिक राजा को हल्ल-विहल्ल कुमार से सेचानक हाथी ले लेने के लिए प्रेरित किया। कणिक ने हल्ल-विहल्ल कुमार से सेचानक हाथी मांगा। इस पर उन्होंने कहा-'यदि आप हाथी लेना चाहते हैं तो हमारे हिस्से का राज्य दे दीजिए।' किन्तु कुणिक उनकी न्यायसंगत बात की परवाह न करके बारबार हाथी मांगने लगा। इस पर दोनों भाई कुणिक के भय से भागकर अपने हाथी और अन्त:पुर सहित वैशाली नगरी में अपने मातामह चेटक राजा की शरण में पहुँचे। कणिक ने नाना के पास दूत भेजकर हल्ल-विहल्ल कुमार को सौंप देने का सन्देश भेजा। किन्तु चेटक राजा ने हल्ल-विहल्ल को नहीं सौंपा / पुनः कणिक ने दूत के साथ सन्देश भेजा कि यदि आप दोनों कुमारों को नहीं सौंपते हैं तो युद्ध के लिए तैयार हो जाइए। चेटक राजा ने न्यायसंगत बाल कही, उस पर कणिक ने कोई विचार नहीं किया। सीधा ही युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया। यह था महाशिलाकण्टक युद्ध का कारण / ' महाशिलाकण्टक संग्राम में कणिक को जीत कैसे हुई ? चेटक राजा ने भी देखा कि कणिक युद्ध किये बिना नहीं मानेगा। और जब उन्होंने सुना कि कूणिक ने युद्ध में सहायता के लिए 'काल' आदि विमातृजात दसों भाइयों को चेटक राजा के साथ युद्ध करने के लिए बुलाया है, तब उन्होंने भी शरणागत की रक्षा एवं न्याय के लिए अठारह गणराज्यों के अधिपति राजाओं को अपनी-अपनी 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 316 (ख) औपपातिकसूत्र पत्रांक 62, 66, 72 (ग) भगवती. (हिन्दीविवेचन युक्त) भाग-३, पृ-११९६ से 1198 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy