________________ 166 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [7 प्र.] भगवन् ! भोग रूपी हैं अथवा अरूपी हैं ? [7 उ.] गौतम ! भोग रूपो होते हैं, वे (भोग) प्ररूपी नहीं होते। 8. सचित्ता मते ! भोगा ? अचित्ता भोगा? गोयमा ! सचित्ता वि भोगा, अचित्ता वि भोगा। [8 प्र.] भगवन् ! भोग सचित्त होते हैं या अचित्त होते हैं ? [8 उ.] गौतम ! भोग सचित्त भी होते हैं और भोग अचित्त भी होते हैं। 6. जीवा भते ! भोगा? * पुच्छा। गोयमा ! जीवा वि भोगा, अजीवा वि भोगा। [6 प्र.] भगवन् ! भोग जीव होते हैं या अजीव होते हैं। [6 उ.] गौतम ! भोग जीव भी होते हैं और भोग अजीव भी होते हैं / 10. जीवाणं भते ! भोगा? अजीवाणं भोगा? गोयमा ! जीवाणं मोगा, नो अजीवाणं भोगा। [10 प्र. भगवन् ! भोग जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं ? [10 उ.] गौतम ! भोग जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं होते / 11. कतिविहा गं भंते ! भोगा पण्णता? गोयमा ! तिविहा भोगा पण्णत्ता, तं जहा-गंधा, रसा, फासा। [11 प्र.] भगवन् ! भोग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [11 उ.] गौतम ! भोग तीन प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार—(१) गन्ध, (2) रस और (3) स्पर्श / 12. कतिविहा णं भते ! कामभोगा पण्णता ? गोयमा ! पंचविहा कामभोगा पण्णत्ता, तं जहा-सहा रूवा गंधा रसा फासा / [12 प्र.] भगवन् ! काम-भोग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [12 उ.] गौतम ! काम-भोग पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श। 13. [1] जीवा णं मते ! कि कामी ? भोगी? गोयमा ! जीवा कामी वि, भोगी वि / [13-1 प्र.] भगवन् ! जीव कामी हैं अथवा भोगी हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org