________________ सप्तम शतक : उद्देशक-७] [ 165 यथासूत्र प्रवृत्ति करने वाले अकषायी अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगने की सयुक्तिक प्ररूपणा की गई है। विविध पहलुओं से काम-भोग एवं कामो-भोगी के स्वरूप और उनके अल्पबहुत्व की प्ररूपरणा 2. रूबी मते ! कामा ? अरूवी कामा ? गोयमा ! रूबी कामा समणाउसो ! , नो प्ररूवी कामा / [2 प्र.] भगवन् ! काम रूपी हैं या अरूपी हैं ? [2 उ.] आयुष्मन श्रमण ! काम रूपी हैं, अरूपी नहीं हैं। 3. सचित्ता मते ! कामा ? अचित्ता कामा ? गोयमा ! सचित्ता वि कामा, अचित्ता वि कामा। [3 प्र.] भगवन् ! काम सचित्त हैं अथवा अचित्त हैं ? [3 उ.] गौतम ! काम सचित्त भी हैं और काम अचित्त भी हैं। 4. जीवाभंते ! कामा ? अजीवा कामा ? गोतमा ! जीवा वि कामा, अजीवा विकामा। [4 प्र.] भगवन् ! काम जीव हैं अथवा अजीव हैं ? [4 उ.] गौतम ! काम जीव भी हैं और काम अजीव भी हैं। 5. जीवाणं भते! कामा ? अजीवाणं कामा ? गोयमा ! जीवाणं कामा, नो प्रजीवाणं कामा। [5 प्र.] भगवन् ! काम जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं ? [5 उ.] गौतम ! काम जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं होते। 6. कतिविहा गंमते ! कामा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा कामा पण्णत्ता, तं जहा-सहा घ, रूवा य / [6 प्र.] भगवन् ! काम कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [6 उ.] गौतम ! काम दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-(१) शब्द और (2) रूप / 7. रुवी भते ! भोगा? अरूवो भोगा? गोयमा ! रूपी भोगा, नो अरूवी भोगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org