________________ सप्तम शतक : उद्देशक-३] [143 [13-1 उ.] गौतम ! यह बात (अर्थ) समर्थ (शक्य) नहीं है / [2] से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति 'जं वेसु नो तं निज्जरेंसु, जं निज्जरेंसु नो तं वेसु' ? गोयमा ! कम्मं वेदेंसु, नोकम्म निरिसु, से तेणटुणं गोयमा ! जाब नो तं वेदेंसु / [13-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जिन कर्मों का बेदन कर लिया, उनको निर्जीर्ण नहीं किया, और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, उनका बेदन नहीं किया ? |13-2 उ.] गौतम ! वेदन किया गया कर्मों का, किन्तु निर्जीर्ण किया गया है-नोकर्मों को; इस कारण से, हे गौतम ! मैंने कहा कि यावत्....."उनका वेदन नहीं किया। 14. नेरतिया णं भंते ! जं वेदेसु तं निरिसु ? एवं नेरइया वि / [14 प्र. भगवन् ! नैरयिक जीवों ने जिस कर्म का वेदन कर लिया, क्या उसे निर्जीर्ण कर लिया? [14 उ.पहले कहे अनुसार नैरयिकों के विषय में भी जान लेना चाहिए। 15. एवं जाब बेमाणिया। [15] इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त चौवीस ही दण्डक में कथन करना चाहिए। 16. [1] से नूणं भंते ! जं वेदेति तं निजरिति, जं निज्जरेंति तं वेदेति ? गोयमा ! नो इण? सम8 / [16-1 प्र.) भगवन् ! क्या वास्तव में जिस कर्म को वेदते हैं, उसकी निर्जरा करते हैं, और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसको वेदते हैं ? [16-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [2] से केण?णं भंते ! एवं धुच्चति जाव 'नो तं वेदेति' ? गोतमा ! कम्मं वेदेति, नोकम्मं निज्जरेंति / से तेणढणं गोयमा ! जाव नो तं वेदेति / [16-2 प्र. भगवन् ! यह आप किस कारण से कहते हैं कि जिसको वेदते हैं, उसकी निर्जरा नहीं करते और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसको वेदते नहीं हैं ? [16-2 उ.] गौतम ! कर्म को वेदते हैं, और नोकर्म को निर्जीर्ण करते हैं / इस कारण से हे गौतम ! मैं कहता हूँ कि यावत् जिसको निर्माण करते हैं, उसका वेदन नहीं करते। 17. एवं नेरइया वि जाव वेमाणिया। [17] इसी तरह नैरयिकों के विषय में जानना चाहिए। यावत् वैमानिकपर्यन्त चौवीस ही दण्डकों में इसी तरह कहना चाहिए / 18. [1] से नूर्ण भंते ! जं वेदिस्संति तं निज्जरिस्संति ? जं निजरिस्संति तं वेदिस्संति ? गोयमा ! गो इण? सम8 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org