________________ 142] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [10.1 प्र] भगवन् ! क्या वास्तव में, जो वेदना है, वह निर्जरा कही जा सकती है ? और जो निर्जरा है, वह वेदना कही जा सकती है ? [10-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / [2] से केगणं भंते ! एवं बुच्चइ 'जा वेयणा न सा निज्जरा, जा निज्जरा न सा वेयणा'? गोयमा ! कम्मं वेदणा, णोकम्मं निज्जरा / से तेणढणं गोयमा ! जाव न सा वेदणा / [10-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं कही जा सकती, और जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं कही जा सकती ? [10-2 उ.] गौतम ! वेदना कर्म है और निर्जरा नोकर्म है। इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि यावत् जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं कही जा सकती / / 11. [1] नेरतियाणं भाते ! जा वेदणा सा निज्जरा ? जा निज्जरा सा वेदणा? गोयमा! णो इण? सम?। [11-1 प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिकों की जो वेदना है, उसे निर्जरा कहा जा सकता है, और जो निर्जरा है, उसे वेदना कहा जा सकता है ? [11-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / [2] से केण?णं भते ! एवं बुच्चति नेरइयाणं जा वेदणा न सा निज्जरा, जा निज्जरा न सा वेयणा? गोतमा ! नेरइयाणं कम्मं वेदणा, णोकम्मं निज्जरा। से तेणढणं गोतमा ! जाव न सा वेयणा। / [11-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि नैरयिकों की जो वेदना है, उसे निर्जरा नहीं कहा जा सकता, और जो निर्जरा है, उसे वेदना नहीं कहा जा सकता ? [11-2 उ.] गोतम ! नैरयिकों की जो वेदना है, वह कम है और जो निर्जरा है, वह नोकर्म है। इस कारण से, हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि यावत् जो निर्जरा है, उसे वेदना नहीं कहा जा सकता। 12. एवं जाव वेमाणियाणं / [12] इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त (चौबीस ही दण्डकों में) कहना चाहिए / 13. [1] से नूर्ण भंते ! जं वेसु तं निरिसु ? जं निजरिसु तं वेसु ? णो इण? समट्ठ। [13-1 प्र.] भगवन् ! जिन कर्मों का वेदत कर (भोग) लिया, क्या उनको निर्जीर्ण कर लिया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, क्या उनका वेदन कर लिया ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org