________________ 138] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्रावट और वर्षा ऋतु में वनस्पतिकायिक सर्वमहाहारी क्यों ?-छह ऋतुओं में से इन दो ऋतुओं में वनस्पतिकायिक जीव सर्वाधिक आहारी होते हैं, इसका कारण यह है कि इन ऋतुओं में वर्षा अधिक बरसती है, इसलिए जलस्नेह की अधिकता के कारण वनस्पति को अधिक आहार मिलता है। ग्रीष्म ऋतु में सर्वाल्पाहारी होते हुए भी वनस्पतियाँ पत्रित-पुष्पित क्यों ?--ग्रीष्म ऋतु में जो वनस्पतियाँ पत्र, पुष्प, फलों से युक्त हरीभरी दिखाई देती हैं, इसका कारण उस समय उष्णयोनिक जीवों और पुद्गलों के उत्पन्न होने, बढ़ने आदि का सिलसिला चालू हो जाना है / ' वनस्पतिकायिक मूलजीवादि से स्पृष्ट मूलादि के आहार के सम्बन्ध में सयुक्तिक समाधान---- 3. से नणं भंते ! मूला मूलजोवफुडा, कंदा कंदजीवफुडा जाव बीया बीयजीवकुडा? हंता, गोतमा ! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया बीयजीवकुडा। [3 प्र.J भगवन् ! क्या वनस्पतिकाय के मूल, निश्चय ही मूलजीवों से स्पृष्ट (व्याप्त) होते हैं, कन्द, कन्द के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, यावत् वीज, बोज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं ? 3 उ.] हाँ गौतम ! मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, यावत् बीज, बीज के जीवों से स्पष्ट होते हैं। __4. जति णं भंते ! मूला मूलजीवफुडा जाव: बीया बीयजीवफुडा, कम्हा णं भते / वणस्सतिकाइया प्राहारेति ? कम्हा परिणामेंति ? ____ गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा पुढविजीवडिबद्धा तम्हा प्राहारेंति, लम्हा परिणामेंति / कंदा कंदजीवफुडा मूलजीवपडिबद्धा तम्हा प्राहारेति, तम्हा परिणामेति / एवं जाव बीया बोयजीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा पाहारेंति, तम्हा परिणामेति / [4 प्र.] भगवन् ! यदि मूल, मूलजीवों से स्पृष्ट होते हैं. यावत् बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, तो फिर, भगवन् ! बनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार से (कैसे) आहार करते हैं, और किस तरह से उसे परिणमाते हैं ? [4 उ.] गौतम ! मूल, मुल के जीवों से व्याप्त (स्पृष्ट) हैं और वे पृथ्वी के जीव के साथ सम्बद्ध (संयुक्त–जुड़े हुए) होते हैं, इस तरह से वनस्पतिकायिक जीव शाहार करते हैं, और उसे परिणमाते हैं। इसी प्रकार कन्द, कन्द के जीवों के साथ स्पृष्ट (व्याप्त) होते हैं और मूल के जीवों से 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 300 2. 'मूलजीवफुडा' का अर्थ-मूल के जीवों से स्पृष्ट-व्याप्त है। 3. 'जाव' शब्द कन्द से लेकर बीज तक के पदों का, सूचक है। यथा-'खंधा, खंधजीवफुडा, तया, साला, पवाला, पत्ता, पुष्फा, फला, बीया।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org