________________ [ध्याख्याप्राप्तिसूत्र प्राशय-द्रव्याथिकनय की दृष्टि से जीव (जीवद्रव्य) शाश्वत है, किन्तु विभिन्न गतियों एवं योनियों में परिभ्रमण करने और विभिन्न पर्याय धारण करने के कारण पर्यायाथिक-नय की दृष्टि से वह प्रशाश्वत है।' यद्यपि कोई एक नैरयिक शाश्वत नहीं है, क्योंकि तेतीस सागरोपम से अधिक काल तक कोई भी जीव नैरयिक पर्याय में नहीं रहता, किन्तु जगत् नैरयिक जीवों से शून्य कभी नहीं होता, अतएव संतति की अपेक्षा से उन्हें शाश्वत कहा गया है। // सप्तम शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त // 6. भगवतीसूत्र प्र. वृत्ति पत्रांक 299 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org