________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [26 उ.] गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं / अर्थात् तीनों प्रकार के हैं / 30. एवं मगुस्साण वि। [30] इसी प्रकार मनुष्य भी तीनों ही प्रकार के हैं / 31. पंचिदियतिरिक्खजोणिया प्रादिल्लविरहिया / [31] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव प्रारम्भ के विकल्प से रहित हैं, (अर्थात् बे प्रत्याख्यानी नहीं हैं), किन्तु अप्रत्याख्यानी हैं या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं। 32. सेसा सवे अपच्चक्खाणी जाव वेमाणिया / [32] शेष सभी जीव यावत् वैमानिक तक अप्रत्याख्यानी हैं। 33. एतेसि णं भंते ! जीवाणं पच्चक्खाणीणं जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! लवस्थोवा जीवा पच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चवखाणी प्रसंखेज्जगुणा, अपच्च. खाणी प्रणंतगुणा / [33 प्र.] भगवन् ! इन प्रत्याख्यानी आदि जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? [33 उ.] गौतम ! सबसे अल्प जीव प्रत्याख्यानी हैं, उनसे प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी असंख्येयगुणे हैं और उनसे अप्रत्याख्यानी अनन्तगुणे हैं / 34. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया सव्यत्थोवा पच्चक्खाणापच्चक्खाणी अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा। [34] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों में प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी जीव सबसे थोड़े हैं, और उनसे असंख्यातगुणे अप्रत्याख्यानी हैं। 35. मणुस्सा सम्वत्योवा पच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणो संखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा। [35] मनुष्यों में प्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे थोड़े हैं, उनसे संख्येयगुणे प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं और उनसे भी असंख्येयगुणे अप्रत्याख्यानी हैं। विवेचन-संयत प्रादि तथा प्रत्याख्यानी प्रादि के जीवों तथा चौवीस दण्डकों में अस्तित्व एवं अल्पबहुत्व की प्ररूपणा प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. 28 से 35 तक) में जीवों तथा चौवीस दण्डकों में संयत-असंयत-संयतासंयत तथा प्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी-प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी के अस्तित्व एवं अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org