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________________ 114 / [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 8. तदनन्तर परम्परा से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होता है, यावत् समस्त कर्मों-दुःखों का अन्त (त्याग) कर देता है / / दान विशेष से बोधि और सिद्धि की प्राप्ति-अन्यत्र भी अनुकम्पा, अकामनिर्जरा, बालतप, दानविशेष एवं विनय से बोधिगुण प्राप्ति का, तथा कई जीव उसी भव में सर्वकर्मविमुक्त होकर मुक्त हो जाते हैं, और कई जीव महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर तीसरे भव में सिद्ध हो जाते हैं, यह उल्लेख मिलता है। निःसंगतादि कारणों से कर्मरहित (मुक्त) जीव को (ऊर्ध्व) गति-प्ररूपरगा--- 11. अस्थि णं मते ! अकम्मस्स गती पण्णायति ? हंता, अस्थि। [11 प्र.] भगवन् ! क्या कर्मरहित जीव की गति होती (स्वीकृत की जाती) है ? [11 उ.] हाँ गौतम ! अकर्म जीव की गति होती-स्वीकार की जाती है। 12. कहं गं माते ! अकम्मास गती पण्णायति ? गोयमा! निस्संगताए 1 निरंगणताए 2 गतिपरिणामेणं 3 बंधणछेयणताए 4 निरिंधणताए 5 पुचपभोगेणं 6 अकम्मस्स गती पण्णायति / [12 प्र.] भगवन् ! अकर्म जीव की गति कैसे होती है ? [12 उ.] गौतम ! नि:संगता से, नीरागता (निरंजनता) से, गतिपरिणाम से, बन्धन का छेद (विच्छेद) हो जाने से, निरिन्धनता--(कर्मरूपी इन्धन से मुक्ति) होने से, और पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है। 13. [1] कहं गं भते ! निस्संगताए 1 निरंगणताए 2 गतिपरिणामेणं 3 बंधणछेयणताए 4 निरिंधणताए 5 पुवप्पनोगेणं 6 अफामस्स गती पण्णायति ? गो० ! से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तु निच्छिद्द निरुवहतं प्राणुपुवीए परिकम्मेमाणे परिकम्मेमाणे दम्भेहि य कुसेहि य वेढेति, बेठित्ता अहिं मट्टियालेोह लिपति, 2 उण्हे दलयति, भूई भूई सुक्कं समाणं प्रत्थाहमतारमपोरिसिसि उदगंसि पक्षिवेज्जा, से नणं गोयमा! से तुबे तेसि अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं गुरुयत्ताए मारियत्ताए सलिलतलमतिवतित्ता अहे घरणितलपतिद्वाणे भवति ? हंता, भवति / अहे गं से तुबे तेसि अट्टाहं मट्टियालेवाणं परिक्खएणं धरणितलतिवतित्ता उपि सलिलतलपतिढाणे भवति ? 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 289 2. 'अणु कंपऽकामणिज्जरबालतवे दाण विगए' इत्यादि तथा 'केई तेणेव भवेण निस्बुया सम्वकम्मो मुक्का / केई तइयभवेणं सिज्झिस्संति जिणसगासे // 1 // --भगवती. अ-वत्ति प. 289 में उद्धत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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