________________ छठा शतक : उद्देशक-८] [61 द्वीप-समुद्रों के शुभ नामों का निर्देश-- . 36. दीव-समुद्दा माते ! केवतिया नामधेज्जेहि पण्णता? गोयमा! जावतिया लोए सुभा नामा, सुभा रूवा, सुभा गंधा, सुभा रसा, सुभा फासा एवतिया णं दीव-समुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णता / एवं नेयव्वा सुभा नामा, उद्धारो परिणामो सम्वजीवाणं / सेवं भते ! सेवं भते ! त्ति। ॥छ8 सए : अट्ठमो उद्देसमो समत्तो॥ [36 प्र.] भगवन् ! द्वीप-समुद्रों के कितने नाम कहे गए हैं ? [36 उ.] गौतम ! इस लोक में जितने भी शुभ नाम हैं, शुभ रूप, शुभ रस, शुभ गन्ध और शुभ स्पर्श हैं, उतने ही नाम द्वीप-समुद्रों के कहे गए हैं। इस प्रकार सब द्वीप-समुद्र शुभ नाम वाले जानने चाहिए / तथा उद्धार, परिणाम और सर्व जीवों का (द्वोपों एवं समुद्रों में) उत्पाद जानना चाहिए। ' 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर यावत् श्री गौतमस्वामी विचरण करने लगे। विवेचन द्वीपों समुद्रों के शुभनामों का निर्देश-प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। द्वीप-समुद्रों के शुभ नाम-ये समुद्र बहुत-से उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुन्दर एवं सुगन्धित पुण्डरीक-महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, केशर एवं विकसित पद्मों आदि से युक्त हैं। स्वस्तिक, श्रीवत्स आदि सुशब्द, पीतादि सुन्दर रूपवाचक शब्द, कपूर आदि सुगन्धवाचक शब्द, मधुररसवाचक शब्द तथा नवनीत आदि मृदुस्पर्शवाचक शब्द जितने भी इस लोक में हैं, उतने ही शुभ नामों वाले द्वीप-समुद्र हैं। ये द्वीप-समुद्र उद्धार, परिणाम और उत्पाद वाले-ढाई सूक्ष्म उद्धार सागरोपम, या 25 कोड़ा-कोड़ी सूक्ष्म उद्धार पल्योपम में जितने समय होते हैं, उतने लोक में द्वीप समुद्र हैं, ये द्वीपसमुद्र पृथ्वी, जल, जीव और पुद्गलों के परिणाम वाले हैं, इनमें जीव पृथ्वीकायिक से यावत् त्रसकायिक रूप में अनेक या अनन्त वार पहले उत्पन्न हो चुके हैं। 3 / छठा शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त / 3. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 282 (ख) जीवाभिगम. सबत्तिक पत्र-३७२-३७३ (ग) तत्त्वार्थ. अ. 3, सू. 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org