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________________ नवमो उद्देसओ : 'कम्म' नवम उद्देशक : कर्म ज्ञानावरणीयबन्ध के साथ अन्य कर्मबन्ध-प्ररूपरणा--- 1. जीवे गं भते ! णाणावरणिज्नं कम्मं बंधमाणे कति कम्मष्पगडीमो बंधइ ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा, प्रदविहबंधए वा, छविहबंधए का / बंधुद्दे सो पण्णवणाए नेयम्यो। [1 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता हुआ जीव कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधता है ? [1 उ.] गौतम ! सात प्रकृतियों को बांधता है, आठ प्रकार को बांधता है अथवा छह प्रकृतियों को बांधता है / यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का बन्ध-उद्देशक कहना चाहिए। विवेचन-ज्ञानावरणीय बन्ध के साथ अन्यकर्मबन्धप्ररूपणा प्रस्तुत सूत्र में ज्ञानावरणीय कर्म के बन्ध के साथ-साथ अन्य कर्म-प्रकृतियों के बन्ध को प्ररूपणा की गई है। स्पष्टीकरण-जिस सथय जीव का आयुष्यबन्धकाल नहीं होता, उस समय वह ज्ञानावरणीय को बांधते समय प्रायुष्यकर्म को छोड़कर सात कर्मों को बांधता है, आयुष्य के बन्धकाल में पाठ कर्मप्रकृतियों को बांधता है, किन्तु सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान की अवस्था में मोहनीय कर्म और आयुकर्म को नहीं बांधता, इसलिए वहाँ ज्ञानावरणीय कर्म बांधता हुआ जीव छह कर्मप्रकृतियों को बांधता है।' बाह्यपुद्गलों के ग्रहणपूर्वक महद्धिकादि देव को एक वर्णादि के पुदगलों को अन्य वर्णादि में विकुर्वरण एवं परिगमन-सामर्थ्य - 2. देवे णं भते ! महिटीए जावमहाणुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियादिइत्ता पभू एगवणं एगरूवं विउवित्तए? 1. (क) भगवतीसूत्र प्र. वृत्ति, पत्रांक 283 (ख) प्रज्ञापनासुत्र, पद 24, बन्धोद्दशक (मु. पा. टि.) विभाग 1, 5.385 से 387 तक (ग) प्रज्ञापनासूत्रीय बन्धोद्देशक का सारांश--- (प्र.) भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता हुना नैरयिक ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधता है ? (उ.) गौतम ! वह या तो पाठ प्रकार के कर्म को बांधता है या सात प्रकार के कर्म बांधता है। इसी प्रकार यावत वैमानिक तक कहना। विशेष यह है कि जैसे समुच्चय जीव के लिए कहा, उसी प्रकार मनुष्यों के लिए कहना; कि वह पाठ, सात या छह प्रकृतियों को बांधता है। -प्रज्ञापना पद 24, बन्धोद्देशक 2. 'नाव' पद से सूचित पाठ-"महज्जुइए महाबले महाजसे महेसक्खे (महासोक्खे-महासरखे) महागुभागे" जीवाभिगमसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 109 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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