________________ छठा शतक : उद्देशक-] का उदय होता है, तभी जात्यादि नामकर्म का उदय होता है। अकेला आयुकर्म ही नैरयिक आदि का भवोपग्राहक है / इसीलिए यहाँ आयुष्य को प्रधानता बताई गई है। प्रायूष्य और बन्ध दोनों में अभेद-यद्यपि प्रश्न यहाँ आयुष्यबन्ध के प्रकार के विषय में है, किन्तु उत्तर है-आयुष्य के प्रकार का; तथापि आयुष्य बन्ध इन दोनों में अव्यतिरेक-अभेदरूप है / जो बन्धा हुया हो, वही आयुष्य, इस प्रकार के व्यवहार के कारण यहाँ आयुष्य के साथ बन्ध का भाव सम्मिलित है / नामकर्म से विशेषित 12 दण्डकों की व्याख्या-(१) जातिनाम-निधत्त प्रादि-जिन जीवों ने जातिनाम निषिक्त किया है, अथवा विशिष्ट बन्धवाला किया है, वे जीव 'जातिनामनिधत्त' कहलाते हैं / इसी प्रकार गतिनामनिधत्त, स्थितिनामनिधत्त, अवगाहनानामनिधत्त, प्रदेशनामनिधत्त, और अनुभागनामनिधत्त, इन सबकी व्याख्या जान लेनी चाहिए। (2) जातिनामनिधत्तायु-जिन जोवों ने जातिनाम के साथ आयुष्य को निधत्त किया है, उन्हें 'जातिनामनिधत्तायु' कहते हैं / इसी तरह दूसरे पदों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए / (3) जातिनामनियुक्त-जिन जीवों ने जातिनाम को नियुक्त (सम्बद्ध निकाचित) किया है, अथवा वेदन प्रारम्भ किया है, वे। इसी तरह दूसरे पदों का अर्थ जान लेना चाहिए। (4) जातिनामनियुक्त-मायु-जिन जीवों ने जातिनाम के साथ आयुष्य नियुक्त किया है, अथवा उसका वेदन प्रारम्भ किया है, वे / इसी प्रकार अन्य पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिए / (5) जातिगोत्रनिधत्त-जिन जीवों ने एकेन्द्रियादिरूप जाति तथा गोत्र एकेन्द्रियादि जाति के योग्य नीचगोत्रादि को निधत्त किया है, वे / इसी प्रकार अन्य पदों का अर्थ भो समझ लेना चाहिए / (6) जातिगोत्रनिधत्तायु-जिन जीवों ने जाति और गोत्र के साथ आयुष्य को निधत्त किया है, वे / इसी प्रकार अन्य पदों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। (7) जातिगोत्रनियुक्तजिन जीवों ने जाति और गोत्र को नियुक्त किया है, वे / (8) जातिगोनियुक्तायु-जिन जीवों ने जाति और गोत्र के साथ प्रायुष्य को नियुक्त कर लिया है, वे। इसी तरह अन्य पदों का अर्थ भी समझ लें। (8) जातिनाम-गोत्र-निधत्त-जिन जीवों ने जाति, नाम अ निधत्त किया है, वे / इसी प्रकार दूसरे पदों का अर्थ भी जान लें / (10) जाति-नाम-गोत्रनिधत्तायुजिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र के साथ प्रायुष्य को निधत्त कर लिया है, वे / इसी प्रकार अन्य पदों का अर्थ भी जान लेना चाहिए (11) जाति-नाम-गोत्र-नियुक्त-जिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र को नियुक्त किया है, वे। इसी प्रकार दूसरे पदों का अर्थ भी समझ लें / (12) जातिनाम-गोत्र-नियुक्तायु-जिन जीवों ने जाति, नाम और गोत्र के साथ प्रायुष्य को नियुक्त किया है, वे / इसी तरह अन्य पदों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए।' लवरणादि असंख्यात-द्वीप-समुद्रों का स्वरूप और प्रमाण--- 35. लवणे णं भाते ! समुद्दे कि उस्सिपोदए, पत्थडोदए, खुभियजले, अखुभियजले ? गोयमा! लवणे णं समुद्दे उस्सियोदए, नो पत्थडोदए; खुभियजले, नो प्रखुभियजले / एत्तो 1. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 280-281 (क) भगवती (हिन्दीविवेचन) भा-२, पृ. 1053 से 1056 तक / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org