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________________ छठा शतक : उद्देशक-७ ] हों। उन सूक्ष्म बालाग्रखण्डों से वह कूप ठस-ठूस कर भरा जाए और उनमें से एक-एक बालाग्रखण्ड प्रतिसमय निकाला जाये। यों निकालते-निकालते जितने काल में वह कुंपा खाली हो जाए, उसे सूक्ष्म उद्धारपत्योपम कहते हैं / इसमें संख्यातवर्षको टिपरिमित काल होता है। ___ अद्धापल्योपम-उपर्युक्त रीति से भरे हुए उपर्युक्त परिमाण वाले कूप में से एक-एक बालाग्र सौ-सौ वर्ष में निकाला जाए / इस प्रकार निकालते-निकालते जितने काल में वह कुपा सर्वथा खाली हो जाए. उसे व्यवहार 'प्रद्धापल्योपम' कहते हैं। यह अनेक संख्यातवर्षकोटिप्रमाण होता है / यदि यही कुपा उपर्युक्त सूक्ष्म बालाग्रखण्डों से भरा हो और उनमें से प्रत्येक बालाग्रखण्ड को सौ-सौ वर्ष में निकालते-निकालते जितने काल में बह कुआ खाली हो जाए, उसे सूक्ष्म प्रद्धापल्योपम कहते हैं। इसमें असंख्यातवर्षकोटिप्रमाण काल होता है। क्षेत्रपल्योपम-उपर्युक्त परिमाण का कप उपयुक्त रीति से बालानों से भरा हो, उन बालानों को जितने अाकाशप्रदेश स्पर्श किये हुए हैं, उन स्पर्श किये हुए आकाशप्रदेशों में से प्रत्येक को (बौद्धिक कल्पना से) प्रति समय निकाला जाए / इस प्रकार उन छुए हुए प्राकाशप्रदेशों को निकालने में जितना समय लगे, वह व्यवहार क्षेत्रपल्योपम है। इसमें असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सपिणीपरिमाण काल होता है / यदि यही कुपा बालाग्र के सूक्ष्मखण्डों से लूंस-ठूस कर भरा जाए, तथा उन बालाग्रखण्डों से छुए हुए एवं नहीं छुए हुए सभी आकाप्रदेशों में से प्रत्येक आकाशप्रदेश को प्रतिसमय निकालते हुए सभी को निकालने में जितना काल लगे, वह सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम है / इसमें भी असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीपरिमाणकाल होता है, किन्तु इसका काल व्यवहार क्षेत्रपल्योपम से असंख्यात गुणा है। सागरोपम के प्रकार—पल्योपम की तरह सागरोपम के तीन भेद हैं और प्रत्येक भेद के दो-दो प्रकार हैं। उद्धारसागरोपम के दो भेद हैं—व्यवहार और सूक्ष्म / दस कोटाकोटि व्यवहार उद्धारपल्योपम का एक व्यवहार उद्धारसागरोपम होता है / दस कोटाकोटि सुक्ष्म उद्धारपल्योपम का एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम होता है / ढाई सूक्ष्म उद्धारसागरोपम या 25 कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म उद्धारपल्योपम में जितने समय होते हैं, उतने ही लोक में द्वीप और समुद्र हैं। . अद्धासागरोपम के भी दो भेद हैं--व्यवहार और सूक्ष्म / दस कोडाकोड़ी व्यवहार अद्धापल्योपम का एक व्यवहार प्रद्धासागरोपम होता है और दस कोडाकोड़ी सूक्ष्म अद्धापल्योपम का एक सूक्ष्म प्रद्धासागरोपम होता है। जीवों की कर्म स्थिति, कायस्थिति और भवस्थिति तथा कारों का परिमाण सूक्ष्म प्रद्धापल्योपम और सूक्ष्म श्रद्धासागरोपम से मापा जाता है। क्षेत्रसागरोपम के भी दो भेद हैं- व्यवहार और सूक्ष्म / दस कोड़ा-कोड़ी व्यवहार क्षेत्रपल्योपम का एक व्यवहार क्षेत्रसागरोपम होता है, और दस कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम का एक सूक्ष्म सागरोपम होता है। सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम एवं सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम से दृष्टिवाद में उक्त द्रव्य मापे जाते हैं।' 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 277 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचनयुक्त) भाग-२, 1040-1041 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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