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________________ 78 ] [न्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वाससहस्साई कालो दूसमदूसमा 1 / एक्कवीसं वाससहस्साई जाव' चत्तारि सागरोवमकोडाकोडोलो कालो सुसमसुसमा 6 / दस सागरोवमकोडाकोडीनो कालो प्रोसप्पिणी। दस सागरोवमकोडाकोडीयो कालो उस्सपिणी / बीसं सागरोवमकोडाकोडीमो कालो प्रोसप्पिणी य उस्सप्पिणी य / (8) इस सागरोपम-परिमाण के अनुसार चार कोटाकोटि सागरोपम-काल का एक सुषमसुषमा पारा होता है; तीन कोटाकोटि सागरोपम-काल का एक सुषमा प्रारा होता है; दो कोटाकोटि सागरोपम-काल का एक सुषमदुःषमा पारा होता है: बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सागरोपम-काल का एक दु:षमसुषमा नारा होता है। इक्कीस हजार वर्ष का एक दुःषम पारा होता है और इक्कीस हजार वर्ष का एक दुःषमदुःषमा पारा होता है। इसी प्रकार उत्सपिणीकाल में पुनः इक्कीस हजार वर्ष परिमित काल का प्रथम दुःषम-दुःषमा पारा होता है। इक्कीस हजार वर्ष का द्वितीय दुःषम पारा होता है, बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सागरोपम काल का तीसरा दुःषम-सुषमा पारा होता है, दो कोटाकोटि सागरोपमकाल का चौथा सुषम-दुःषमा आरा होता है। तीन कोटाकोटि सागरोपमकाल का पांचवाँ सुषम पारा होता है और चार कोटाकोटि सागरोपमकाल का छठा सुषम-सुषमा पारा होता है। इस प्रकार (कुल) दस कोटाकोटि सागरोपमकाल का एक अवसर्पिणीकाल होता है और दस कोटाकोटि सागरोपम काल का ही उत्सर्पिणीकाल होता है। यों बीस कोटाकोटि सागरोपमकाल का एक अवसर्पिणी-उत्सपिणी-कालचक्र होता है / विवेचन--औपमिककाल का परिमाण--प्रस्तुत दो सूत्रों में से प्रथमसूत्र में पल्योपम एवं सागरोपम काल का परिमाण तथा द्वितीय सूत्र में अवसपिणी-उत्सर्पिणी रूप द्वादश आरे सहित कालचक्र का परिमाण बताया गया है। पल्योपम का स्वरूप और प्रकार यहाँ जो पल्योपम का स्वरूप बतलाया गया है, वह व्यवहार प्रद्धापल्योपम का स्वरूप बताया गया है। पल्योपम के मुख्य तीन भेद हैं—(१) उद्धारपल्योपम, (2) अद्धापल्योपम और (3) क्षेत्रपल्योपम / उद्धारपल्योपम आदि के प्रत्येक के दो प्रकार हैं-व्यवहार उद्धारपल्योपम एवं सूक्ष्म उद्धारपल्योपम, व्यवहार अद्धापल्योपम एवं सूक्ष्म अद्धापल्योपम, तथा व्यवहार क्षेत्रपल्योपम एवं सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम / __ उद्धारपल्योपम-उत्सेधांगुल परिमाण से एक योजन लम्बे, एक योजन चौड़े और एक योजन ऊँचे-गहरे गोलाकार कुए में देवकुरु-उत्तरकूरु के यौगलिकों के मुण्डित मस्तक पर एक दिन के, दो दिन के यावत् 7 दिन के उगे हुए करोड़ों बालानों से उस कप को यों ठूस ठूस कर भरा जाए कि वे बालाग्र न तो आग से जल सकें और न ही हवा से उड़ सकें / फिर उनमें से प्रत्येक को एकएक समय में निकालते हुए जितने समय में वह कुआ सर्वथा खाली हो जाए, उस कालमान को व्यावहारिक उद्धार पल्योपम कहते हैं। यह पल्योषम संख्यात समयपरिमित होता है। इसी तरह उक्त बालान के असंख्यात अदृश्य खण्ड किये जाएँ, जो कि विशुद्ध नेत्र वाले छद्मस्थ पुरुष के दृष्टिगोचर होने वाले सूक्ष्म पुद्गलद्रव्य के असंख्यातवें भाग एवं सूक्ष्म पनक के शरीर से असंख्यातगुणा 1. 'जाव' पद यहाँ अवसर्पिणीकाल को गणना की तरह ही उत्सर्पिणीकाल-गणना का बोधक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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