________________ छठा शतक : उद्देशक-५] [ 65 [39 प्र.] इस प्रकार अनुक्रम से यावत् रिष्ट विमान तक जान लेना चाहिए कि भगवन् ! रिष्ट देव कहाँ रहते हैं ? [36 उ.] गौतम ! रिष्ट देव रिष्ट विमान में रहते हैं। 40. [1] सारस्सय-मादिच्चाणं भते ! देवाणं कति देवा, कति देवसता पण्णता? गोयमा ! सत्त देवा, सत्त देवसया परिवारो पण्णत्तो। [40-1 प्र.] भगवन् ! सारस्वत और आदित्य, इन दो देवों के कितने देव हैं और कितने सौ देवों का परिवार कहा गया है ? [40-1 उ.] गौतम ! सारस्वत और आदित्य, इन दो देवों के सात देव (स्वामी = अधिपति) हैं और इनके 700 देवों का परिवार है / [2] वाही-वरुणाणं वेवाणं चउद्दस देवा, चउद्दस देवसहस्सा परिवारो पण्णत्तो। [40-2] वह्नि और अरुण, इन दो देवों के 14 देव स्वामी और 14 हजार देवों का परिवार कहा गया है। [3] गद्दतोय-तुसियाणं देवाणं सत्त देवा, सत्त देवसहस्सा परिवारो पण्णत्तो। - [40-3] गर्दतोय और तुषित देवों के 7 देव स्वामी और 7 हजार देवों का परिवार कहा गया है। [4] अवसेसाणं नव देवा, नव देवसया परिवारो पण्णत्ता। पढमजुगलम्मि सत्त उ सयाणि बीयम्मि चोदस सहस्सा / ततिए सत्त सहस्सा नव चेव सयाणि सेसेसु // 3 // [40-4] शेष (अव्याबाध, आग्नेय और रिष्ट, इन) तीनों देवों के नौ देव स्वामी और 100 देवों का परिवार कहा गया है। (गाथार्थ-) प्रथम युगल में 700, दूसरे युगल में 14,000 देवों का परिवार, तीसरे युगल में 7,000 देवों का परिवार और शेष तीन देवों के 600 देवों का परिवार है / 41. [1] लोगंतिगविमाणा णं माते ! किंपतिद्विता पण्णता? गोयमा ! वाउपतिट्ठिया पण्णत्ता / [41-1 प्र.] भगवन् ! लोकान्तिकविमान किसके आधार पर रहे हुए (प्रतिष्ठित) हैं ? [41-1 उ.] गौतम ! लोकान्तिकविमान, वायुप्रतिष्ठित (वायु के आधार पर रहे हुए) हैं। [2] एवं नेयव्वं-'विमाणाणं पतिद्वाणं बाहल्लुच्चत्तमेव संठाणे' / बंभलोयवत्तव्वया नेयम्वा जाव हंता गोयमा ! प्रति अदुवा प्रणतखुत्तो, नो चेव णं देवत्ताए / Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org