________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [33 प्र.) भगवन् ! अचि विमान कहाँ है ? [33 उ.] गौतम ! अचि विमान उत्तर और पूर्व के बीच में है। 34. कहि णं भते ! अच्चिमाली विमाणे प०? गोयमा ! पुरस्थिमेणं / [34 प्र] भगवन् ! अचिमाली विमान कहाँ है ? [34 उ.] गौतम ! अचिमाली विमान पूर्व में है / 35. एवं परिवाडीए नेयवं जाव' कहि गंभते ! रिविमाणे पण्णते? गोयमा ! बहुमज्झदेसमागे / [35 प्र.] इसी क्रम (परिपाटी) से सभी विमानों के विषय में जानना चाहिए / यावत्-हे भगवन् ! रिष्ट विमान कहाँ बताया गया है ? [35 उ.! गौतम ! रिष्ट विमान बहुमध्यभाग (सबके मध्य) में बताया गया है। 36. एतेसु णं असु लोगतियविमाणेसु अविहा लोगंतिया देवा परिवति, तं जहा-- सारस्सयमातिच्चा वही वरुणा घ गद्दतोया य / तुसिया अब्बाबाहा अगिच्चा चेव रिट्ठा य // 2 // [36] इन आठ लोकान्तिक विमानों में अष्टविध (आठ जाति के) लोकान्तिक देव निवास करते हैं। वे (आठ प्रकार के लोकान्तिक देव) इस प्रकार हैं—(१) सारस्वत, (2) अादित्य, (3) वह्नि, (4) वरुण, (5) गर्दतोय, (6) तुषित, (7) आग्नेय और (8) रिष्ट देव (बीच में)। 37. कहिणं भंते ! सारस्सता देवा परिवसंति ? गोयमा ! अच्चिम्मि विमाणे परिवति / [37 प्र.] भगवन् ! सारस्वत देव कहाँ रहते हैं ? [37 उ.] गौतम ! सारस्वत देव अचि विमान में रहते हैं / 38. कहि णं भंते ! प्रादिच्चा देवा परिवसंति ? गोयमा ! अच्चिमालिम्मि विमाणे / [38 प्र.] भगवन् ! आदित्य देव कहाँ रहते हैं ? [38 उ.] गौतम ! आदित्य देव अचिमाली विमान में रहते हैं / 39. एवं नेयव्वं जहाणुपुब्बीए जाव कहि णं माते ! रिट्ठा देवा परिवसंति ? गोयमा / रिटुम्मि विमाणे / 1, 'जाब' पद से यहाँ वैरोचन से लेकर सुप्रतिष्ठाभ विमान तक की वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org