________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [28 उ.] गौतम ! कृष्णराजियों का वर्ण काला है, यह काली कान्ति वाली है, यावत् परमकृष्ण (एकदम काला) है। तमस्काय की तरह अतीव भयंकर होने से इसे देखते ही देव क्षुब्ध हो जाता है; यावत् अगर कोई देव (साहस करके इनमें प्रविष्ट हो जाए, तो भी वह) शीघ्रगति से झटपट इसे पार कर जाता है। 26. कण्हराईणं भते ! कति नामधेज्जा पण्णता? गोयमा! अट्ठ नामधेज्जा पण्णता, तं जहा—कण्हराई ति वा, मेहराई ति वा, मघा इ वा, माघवती तिवा, वातफलिहे ति था, वातपलिक्खोभे इ वा, देवलिहे इ वा, देवपलिक्खो ति वा। [26 प्र] भगवन् ! कृष्णराजियों के कितने नाम कहे गए हैं ? [19 उ.] गौतम ! कृष्णराजियों के पाठ नाम कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) कृष्णराजि, (2) मेघराजि, (3) मघा, (4) माघवती, (5) वातपरिघा, (6) वातपरिक्षोभा, (7) देवपरिधा और (8) देवपरिक्षोभा। 30. कण्हाईप्रोणं भंते ! किं पुढविपरिणामानो, प्राउपरिणामाप्रो, जीवपरिणामानो, पुग्गलपरिणामाप्रो ? गोयमा! पुढविपरिणामानो, नो पाउपरिणामाग्रो, जीवपरिणामानो वि, पुग्गलपरिणामानो वि। [30 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियाँ पृथ्वी के परिणामरूप हैं, जल के परिणामरूप हैं. या जीव के परिणामरूप हैं, अथवा पुद्गलों के परिणामरूप हैं ? 30 उ.] गौतम ! कृष्णराजियाँ पृथ्वी के परिणामरूप हैं, किन्तु जल के परिणामरूप नहीं हैं, वे जीव के परिणामरूप भी हैं और पुद्गलों के परिणामरूप भी हैं / 31. कण्हराईसुणं भते ! सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता उववन्नवा? हता, गोयमा! असई अदुवा अणतखुत्तो, नो चेव णं बादराउकाइयत्ताए, बादरप्रमणिकाइयत्ताए, बादरवणस्सतिकाइयत्ताए वा। ___ [31 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? [31 उ.] हाँ, गौतम ! सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व कृष्णराजियों में अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं, किन्तु बादर अप्कायरूप से, बादर अग्निकायरूप से और बादर वनस्पतिकायरूप से उत्पन्न नहीं हुए हैं। विवेचन-विभिन्न पहलुओं से कृष्णराजियों से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-प्रस्तुत पन्द्रह सूत्रों (सू. 17 से 31 तक) में तमस्काय की तरह कृष्णराजियों के सम्बन्ध में विभिन्न प्रश्न उठाकर उनके समाधान प्रस्तुत कर दिये गए हैं। तमस्काय और कृष्णराज के प्रश्नोत्तरों में कहाँ सादृश्य, कहाँ अन्तर?... तमस्काय और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org