________________ छठा शतक : उद्देशक-५ ] [2] तं भते ! कि देवो पकरेति 3 ? गोयमा ! देवो पकरेति, नो असुरो, नो नागो य / [23-2 प्र.] भगवन् ! क्या इन सबको देव करता है, असुर (कुमार) करता है अथवा नाग (कुमार) करता है ? [23-2 उ.] गौतम ! (वहाँ यह सब) देव ही करता है, किन्तु न असुर (कुमार) करता है और न नाग (कुमार) करता है। 24. अस्थि णं भाते ! कण्हराईसु बादरे थणियसद्दे ? जहा पोराला (सु. 23) तहा। [24 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में बादर स्तनितशब्द है ? [24 उ.] गौतम ! जिस प्रकार से उदार मेघों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार इनका भी कथन करना चाहिए / (अर्थात्-कृष्णराजियों में बादर स्तनितशब्द है और उसे देव करता है, किन्तु असुरकुमार या नागकुमार नहीं करता।) 25. अस्थि णं भते ! कण्हराईसु बादरे प्राउकाए बादरे अगणिकाए बायरे वणप्फतिकाए ? णो इण8 सम8, णऽण्णस्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं / [25 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय और बादर वनस्पतिकाय है ? [25 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / यह निषेध विग्रहगतिसमापन्न जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के लिये है। 26. अस्थि णं भंते ! 0 चंदिमसरिय० 450 ? यो इण। [26 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ? [26 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / (अर्थात्-ये वहाँ नहीं हैं / ) 27. अस्थि णं कण्ह० चंदामा ति वा 2 ? को इण8 समट्ठ। [27 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में चन्द्र की कान्ति या सूर्य की कान्ति (आभा) है ? [27 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / 28. कण्हराईओणं भते ! केरिसियानो वणेणं पन्नत्ताओ? गोयमा ! कालाओ जाव' खिप्पामेव वीतीवएज्जा। [28 प्र.] भगवन् ! कृष्ण राजियों का वर्ण कैसा है ? 1. 'जाव' पद यहाँ सू. 13 के निम्नोक्त पाठ का सूचक है—'कालावभासाओ गंभीरलोमहरिसजणणाओ भीमाओ उत्तासणाओ परमकिण्हाओ वण्णणं पण्णत्ताओ, देवे वि अत्थेगतिए जे णं तप्पढमयाए पासित्ताणं खुभाएज्जा, अहे णं अभिसमागच्छेज्जा, तओ पच्छा सोहं सीहं तुरियं तुरियं तत्थ खिप्पामेव बीतीवएज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org