________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 16. कण्हराईश्रोणं भते! केवतियं प्रायामेणं, केवतियं विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ताश्रो? गोयमा! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई प्रायामेणं संखेज्जाई जोयणसहस्साई विक्खं भेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्तानो। [19 प्र.] भगवन् ! कृष्णराजियों का आयाम (लम्बाई), विष्कम्भ (विस्तार-चौड़ाई) और परिक्षेप (घेरा=परिधि) कितना है ? [19 उ.] गौतम ! कृष्णराजियों का आयाम असंख्येय हजार योजन है, विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन कहा गया है / 20. कण्हराईनो णं भते ! केमहालियानो पण्णत्तानो ? गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव प्रद्धमासं बीतीवएज्जा / अत्थेगतियं कण्हराई वीतीवएज्जा, प्रत्येगइयं कण्हराइं जो वीतीवएज्जा / एमहालियानो णं गोयमा ! कण्हराईनो पण्णत्तानो। [20 प्र.] भगवन् ! कृष्णराजियाँ कितनी बड़ी कही गई हैं ? [20 उ.] गौतम ! तीन चुटकी बजाए, उतने समय में इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा करके पा जाए-इतनी शीघ्र दिव्यगति से कोई देव लगातार एक दिन, दो दिन, स तक चले. तब कहीं वह देव किसी कृष्णराजि को पार कर पाता है, और किसी कृष्णराजि को पार नहीं कर पाता / हे गौतम ! कृष्ण राजियाँ इतनी बड़ी हैं / 21. अस्यि णं भते ! कण्हराईसु गेहा ति वा, गेहावणा ति वा ? नो इगट्टे सम?। {21 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में गृह हैं अथवा गृहापण हैं ? [21 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है / 22. अस्थि णं भते ! कण्हराईसु गामा ति वा० ? णो इग8 सम8। [22 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में ग्राम आदि हैं ? [22 उ.] (गौतम ! ) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात्-कृष्णराजियों में ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश नहीं हैं / ) 23. [1] अस्थि णं माते ! काह० ओराला बलाहया सम्मुच्छंति 3 ? हंता, अस्थि / [23-1 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णराजियों में उदार (विशाल) महामेध संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूछित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ? __ [23-1 उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णराजियों में ऐसा होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org