________________ 50] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र समस्त जीवों में प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान के होने, जानने, करने तथा प्रायुष्यबन्ध के सम्बन्ध में प्ररूपरणा--- 21. [1] जीवा णं मते ! कि पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी? गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणाऽच्चकवाणी वि / [21-1 प्र.] भगवन् ! क्या जीव प्रत्यास्थानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं ? __[21-1 उ.] गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं। [2] सध्वजीवाणं एवं पुच्छा। गोयमा ! नेरइया अपच्चक्खाणी जाव चरिदिया, सेसा दो पडिसेहेयव्वा / पंचेंदियतिरिक्खजोणिया नो पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणापच्चक्खाणो वि / मणुस्सा तिणि वि / सेसा जहा नेरतिया। _[21-2 प्र. इसी तरह सभी जीवों के सम्बन्ध में प्रश्न है (कि वे प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी हैं ?) [21-2 उ.] गौतम ! नैरयिकजीव अप्रत्याख्यानी हैं, यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक अप्रत्याख्यानी हैं, इन जीवों (नैरयिक से लेकर चतरिन्द्रिय जीवों तक) में शेष दो भंगों (प्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी) का निषेध करना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च प्रत्याख्यानी नहीं हैं, किन्तु अप्रत्याख्यानी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं। मनुष्य तीनों भंग के स्वामी हैं / शेष जीवों का कथन नै रयिकों की तरह करना चाहिए। 22. जीवा णं भते ! कि पच्चक्खाणं जाणति, अपच्चक्खाणं जाणंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं जाणंति? गोयमा! जे पंचेंदिया ते तिणि वि जाणंति, अक्सेसा पच्चक्खाणं न जाणंति / [22 प्र.] भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यान को जानते हैं, अप्रत्याख्यान को जानते हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान को जानते हैं ? [22 उ.] गौतम ! जो पञ्चेन्द्रिय जीव हैं, वे तीनों को जानते हैं। शेष जीव प्रत्याख्यान को नहीं जानते, (अप्रत्याख्यान को नहीं जानते और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान को भी नहीं जानते / ) 23. जीवा णं भते ! कि पच्चक्खाणं कुब्बति अपच्चक्खाणं कुवंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं कुव्यंति? जहा प्रोहिया तहा कुब्धणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org