________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 16. [1] पाहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए प्राणापाणपज्जत्तीए जीवेगिदियवज्जो तियभगो। भासामणपज्जत्तीए जहा सण्णी। [16-1] आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति और श्वासोच्छवास-पर्याप्ति बाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए / भाषापर्याप्ति और मन:पर्याप्ति वाले जीवों का कथन संशीजीवों के समान कहना चाहिए। [2] पाहारअपज्जत्तीए जहा अणाहारगा। सरीरप्रपज्जत्तीए इंदियनपज्जत्तीए प्राणापाणअपज्जत्तीए जीवेगिदियवज्जो तियभंगो, नेरइय-देव-मणुएहि छन्भगा। भासामणअपज्जत्तीए जीवादिनो तिय गो, णेरइय-देव-मणुएहि छम्भगा। [16-2] ग्राहारअपर्याप्ति वाले जीवों का कथन अनाहारक जीवों के समान कहना चाहिए। शरीर-अपर्याप्ति, इन्द्रिय-अपर्याप्ति और श्वासोच्छवास-अपर्याप्ति वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ तीन भंग कहने चाहिए / (अपर्याप्तक) नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए / भाषाअपर्याप्ति और मन:-अपर्याप्ति वाले जीवों में जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए / नैरथिक, देव और मनुष्यों में छह भंग जानने चाहिए / 20. गाहा-सपदेसाऽऽहारग भविय सणि लेस्सा दिट्ठी संजय कसाए / गाणे जोगुवनोगे वेदे य सरीर पज्जत्ती // 1 // [20. संग्रहणी गाथा का अर्थ---] सप्रदेश, आहारक, भव्य, संजी, लेश्या, दृष्टि, संयत, कषाय, ज्ञान, योग, उपयोग, वेद, शरीर और पर्याप्ति, इन चौदह द्वारों का कथन ऊपर किया गया है। विवेचन-आहारक अादि जीवों में सप्रदेश-प्रप्रदेश-वक्तव्यता--प्रस्तुत बीस सूत्रों में (सू. 1 से 20 तक) आहारक आदि 14 द्वारों में सप्रदेश-अप्रदेश की दृष्टि से विविध भंगों की प्ररूपणा की गई है। सप्रदेश प्रादि चौदह द्वार--(१) सप्रदेशद्वार-कालादेश का अर्थ है- काल की अपेक्षा से / विभागरहित को अप्रदेश और विभागसहित को सप्रदेश कहते हैं / समुच्चय में जीव अनादि है, इसलिए उसकी स्थिति अनन्त समय की है। इसलिए वह सप्रदेश है / जो जिस भाव (पर्याय) में प्रथमसमयवर्ती होता है, वह काल की अपेक्षा अप्रदेश और एक समय से अधिक दो-तीन-चार आदि समयों में वर्तने वाला काल की अपेक्षा सप्रदेश होता है।' कालादेश की अपेक्षा जीवों के भंग-जिस नैरयिक जीव को उत्पन्न हुए एक समय हुया है, वह कालादेश से अप्रदेश है, और प्रथम समय के पश्चात् द्वितीय-तृतीयादिसमयवर्ती नैरयिक सप्रदेश है / इस प्रकार प्रौधिक जोव, नैरयिक आदि 24 और सिद्ध के मिलाकर 26 दण्डकों में एकवचन को 1. जो जस्स पढमसमए बट्टइ. भावस्स सो उ अपएसो / अण्णम्मि बट्टमाणो कालाएसेण सपएसो // 1 / / —भगवती प्रवृत्ति, पत्रांक 261 में उद्धत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org