________________ छठा शतक : उद्देशक-३ ] { 21 [21-1 उ.] गौतम ! परित्त जीव ज्ञानावरणीय कर्म को कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता, अपरित्त जीव बांधता है और नोपरित्त-नोअपरित्त जीव नहीं बांधता / [2] एवं प्राउगवज्जायो सत्त कम्मपगडीयो / [21-2] इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। [3] पाउए परित्तो वि, अपरित्तो वि भयणाए / नोपरित्तोनोअपरित्तो न बंधई। [21-3] आयुष्यकर्म को परित्तजीव भी और अपरित्तजीव भी भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं; नोपरित्त-नोअपरित्तजीव नहीं बाँधते / 22. [1] णाणावरणिज्जं फम्म कि प्राभिणिबोहियनाणी बंधइ, सुयनाणी०, ओहिनाणी०, मणपज्जवनाणी०, केवलनाणी बं? गोधमा ! हेटिल्ला चत्तारि भयणाए, केवलनाणी न बंध / [22-1 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या आभिनिबोधिक (मति) ज्ञानी बांधता है, श्रुतज्ञानी बांधता है, अवधिज्ञानी बांधता है, मनःपर्यवज्ञानी बांधता है अथवा केवलज्ञानी बांधता है ? (22-1 उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को निचले चार (ग्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्रतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यवशानी) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं; केवलज्ञानी नहीं बांधता। [2] एवं वेदणिज्जबज्जानो सत्त वि। [22-2] इसी प्रकार वेदनीय को छोड़कर शेष सातों कर्म-प्रकृतियों के विषय में समझ लेना चाहिए। [3] वेदणिज्ज हेडिल्ला चत्तारि बंधति, केवलनाणी भयणाए / [22-3] वेदनीय कर्म को निचले चारों (आभिनिबोधिकज्ञानी से लेकर मन:पर्यवज्ञानी तक) बांधते हैं; केवलज्ञानी भजना से (कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं) बांधता है। 23. पाणावरणिज्जं कि मतिघण्णाणी बंधइ, सुय०, विभंग ? गोयमा ! प्राउगवज्जापो सत्त वि बंधति / पाउगं भयणाए / [23 प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय कर्म को मति-अज्ञानी बांधता है, श्रुत-अज्ञानी बांधता है या विभगई धता है? [23 उ.] गौतम ! आयुष्य कर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्म-प्रकृतियों को ये (तीनों प्रकार के अज्ञानी) बांधते हैं / आयुष्यकर्म को ये तीनों कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं बांधते / 24. [1] णाणावरणिज्जं कि मशजोगी बंधइ, वय०, काय, अजोगी बंधन ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org