________________ 28] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! पज्जत्तए भयणाए, अपज्जत्तए बंधई, नोपज्जत्तएनोअपज्जत्तए न बंधइ / [19-1 प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय कर्म को पर्याप्तक जीव बांधता है, अपर्याप्त जीव बांधता है अथवा नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक जीव बांधता है ? [16-1 उ.] गौतम! (ज्ञानावरणीय कर्म को) पर्याप्तक जीव भजना से बांधता है; (कदाचित् बांधता हैं, कदाचित् नहीं) अपर्याप्तक जीव बांधता है और नो-पर्याप्तक-नो-अपर्याप्तक जीव नहीं बांधता। [2] एवं प्राउगवज्जायो। [16-2] इस प्रकार आयुष्यकर्म के सिवाय शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। [3] पाउगं हेढिल्ला दो भयणाए, उरिल्ले ण बंधइ / [16-3] आयुष्यकर्म को निचले दो (पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीव) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं / नोपर्याप्त-अपर्याप्त नहीं बांधता / 20. [1] नाणावरणिज्जं कि भासए बंधइ, प्रभासए? गोयमा ! दो वि भयणाए। [20-1 प्र.] भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय कर्म को भाषक जीव बांधता है, या अभाषक जीव बांधता है ? [20-1 उ.] गौतम ! ज्ञातावरणीय कर्म को दोनों-भाषक और प्रभाषक भजना से (कदचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं। [2] एवं वेदणिज्जवज्जानो सत्त / [20-2] इसी प्रकार वेदनीय को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिये। [3] वेदणिज्जं भासए बंधइ, अभासए भयणाए / [20-3] वेदनीय कर्म को भाषक जीव बांधता है, प्रभाषक जीव कदाचित् बाधता है, कदाचिद् नहीं बांधता / 21. [1] गाणावरणिज्ज कि परित्ते बंधइ, अपरित्ते बंधइ, नोपरित्तेनोअपरित्ते बंधइ ? गोयमा ! परित्ते भयणाए, अपरित्ते बंधई, नोपरितेनोअपरित्ते न बंधइ / 21-1 प्र.] भगवत् ! क्या परित्त जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता है, अपरित्त जीव बांधता है, अथवा नोपरित्त-नोअपरित्त जीव बांधता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org