________________ छठा शतक : उद्देशक-३] 17. [1] पाणावरणिज्ज कम्म कि भवसिद्धीए बंधइ, प्रभवसिद्धीए बंधइ, नोभवसिद्धीएनोप्रभवसिद्धीए बंधति ? गोयमा ! भवसिद्धीए भयणाए, अभवसिद्धीए बंधति, नोभवसिद्धीएनोप्रभवसिद्धीए ण बंधइ / [17-1 प्र.) भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या भवसिद्धिक बांधता है, अभवसिद्धिक बांधता है अथवा नोभवसिद्धिक-नो प्रभवसिद्धिक बांधता है ? [17-1 उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को) भवसिद्धिक जीव भजना से (कदाचित बांधता है, कदाचित् नहीं) बांधता है / अभवसिद्धिक जीव बांधता है और नोभवसिद्धिक-तो अभवसिद्धिक जीव नहीं बांधता / [2] एवं प्राउगवन्जानो सत्त वि / [17-2] इस प्रकार प्रायुष्य कर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। [3] आउगं हैटिल्ला दो भयणाए, उरिल्लो न बंधइ / [17-3] प्रायुष्यकर्म को नीचे के दो (भवसिद्धिक-भव्य और अभवसिद्धिक-अभव्य) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं। ऊपर का (नोभवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक) नहीं बांधता। 18. [1] णाणावरणिज्जं कि चपखुदंसणी बंधति, प्रचक्खुदंस०, प्रोहिदंस०, केवलदं ? गोयमा ! हेदिल्ला तिणि भयणाए, उरिल्ले | बंधइ / [18-1 प्र.] भगवन् ! ज्ञानाबरणीय कर्म को क्या चक्षुदर्शनी बांधता है, अचक्षुदर्शनी बांधता है, अवधिदर्शनी बांधता है अथवा केवलदर्शनी बांधता है ? 18.1 उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को) नीचे के तीन (चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी) भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं किन्तु-केवलदर्शनी नहीं बांधता। [2] एवं वेदणिज्जवज्जानो सत्त वि। ___ [18-2] इसी प्रकार वेदनीय को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में समझ लेना चाहिए। [3] वेदणिज्ज हेछिल्ला तिष्णि बंधति, केवलदसणी भयणाए / [18.3] वेदनीयकर्म को निचले तीन (चक्षुदर्शनी, प्रचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी) बांधते हैं, किन्तु केवलदर्शनी भजना से (कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं) बांधते हैं / 16. [1] जाणावरणिज्ज कम्मं कि पज्जत्तनो बंधइ, अपज्जत्तनो बंधइ, नोपज्जत्तएनोपज्जत्तए बंधइ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org