________________ 26 ] [ व्याख्याप्राप्तिसूब 14. [1] पाणावरणिज्ज णं म ते ! कम्मं कि सम्मट्टिी बंधइ, मिच्छट्टिी बंधइ, सम्मामिच्छट्टिी बंधइ ? गोयमा ! सम्मट्ठिी सिय बंधइ सिय नो बंधइ, मिच्छट्ठिी बंधइ, सम्मामिच्छट्ठिी बंधइ / [15-1 प्र.J भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या सम्यग्दृष्टि बांधता है, मिथ्यादृष्टि बांधता है अथवा सम्यग्-मिथ्यादृष्टि बांधता है ? [15-1 उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को) सम्यग्दृष्टि कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता, मिथ्यादृष्टि बांधता है और सम्यमिथ्यादृष्टि भी बांधता है / [2] एवं प्राउगवज्जानो सत्त वि। [15-2] इसी प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए / [3] पाउगे हेट्टिल्ला दो भयणाए, सम्मामिच्छट्ठिी न बंधइ / [15-3] आयुष्यकर्म को नीचे के दो-सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि-भजना से बांधते हैं (अर्थात्-कदाचिद् बांधते हैं, कदाचित् नहीं बांधते / ) सम्यग्-मिथ्यादृष्टि (सम्यग्-मिथ्यादृष्टि अवस्था में) नहीं बांधते / / 16. [1] जाणावरणिज्जं कि सण्णी बंधइ, असण्णी बंधई, नोसम्णोनोअसण्णी बंधइ? गोयमा! सग्णी सिय बंधइ सिय नो बंधइ, असण्णी बंधइ, नोसणीनोअसण्णी न बंधइ / [16-1 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या संज्ञी बांधता है, असंज्ञी बांधता है अथवा नोसंज्ञी-नो असंज्ञी बांधता है ? [16-1 उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को) संज्ञी कदाचित् बांधता है, और कदाचित् नहीं बांधता / असंज्ञी बांधता है, और नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी नहीं बांधता / [2] एवं वेदणिज्जाऽऽउगवज्जानो छ कम्मध्पगडीयो। [16-2] इस प्रकार वेदनीय और आयुष्य को छोड़ कर शेष छह कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। [3] वेदणिज्जं हेडिल्ला दो बंधति, उरिल्ले भयणाए / अाउगं हेडिल्ला दो भयणाए, उरिल्ले न बंधइ। [16-3] वेदनीय कर्म को संज्ञी भी बांधता है और असंज्ञो भी बांधता है, किन्तु नोसंज्ञी नो असंज्ञी कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता / आयुष्यकर्म को नीचे के दो-संज्ञी और असंज्ञी जीव भजना से (कदाचित् बांधते हैं, कदाचित् नहीं) बांधते हैं। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव आयुष्य कर्म को नहीं बांधते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org