________________ छठा शतक : उद्देशक-३ ] [ 25 [12-1 उ. गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को स्त्री भी बांधती है, पुरुष भी बांधता है और नपुंसक भी बांधता है, परन्तु जो नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक होता है, वह कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता। [2] एवं प्राउगवज्जाम्रो सत्त कम्मपगडोयो / [12-2] इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। 13. प्राउगं गं भंते ! कम्म कि इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसपो बंधइ ?0 पुच्छा। गोयमा ! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, एवं तिणि वि भाणियव्वा / नोइत्थी-नोपुरिसोनोनसनो न बंधइ। [13 प्र.] भगवन् ! आयुष्यकर्म को क्या स्त्री बांधती हैं, पुरुष बांधता है, नपुसक बांधता है अथवा नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुसक बांधता है ? [13 उ.] 'गौतम ! आयुष्यकर्म स्त्री कदाचित् बांधती है और कदाचित् नहीं बांधती। इसी प्रकार पुरुष और नपुंसक के विषय में भी कहना चाहिए। नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक आयुष्यकर्म को नहीं बाँधता।' 14. [1] गाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं कि संजते बंधइ, असंजते०, संजयासंजए बंधइ, नोसंजए-नोप्रसंजए-नोसंजयासंजए बंधति ? __ गोयमा ! संजए सिय बंधति सिय नो बंधति, असंजए बंधइ, संजयासंजए वि बंधइ, नोसंजएनोअसंजए नोसंजयासंजए न बंधति / [14.1 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या संयत बांधता है, असंयत बांधता है, संयतासंयत बांधता है अथवा नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत बांधता है ? [14-1 उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीय कर्म को) संयत कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता, किन्तु असंयत बांधता है, संयतासंयत भी बांधता है, परन्तु नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत नहीं बांधता / [2] एवं प्राउगवज्जानो सत्त वि। [14-2] इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। [3] प्राउगे हेछिल्ला तिणि भयणाए, उरिल्ले ण बंधइ / (14-3] अायुष्यकर्म के सम्बन्ध में नीचे के तीन-संयत, असंयत और संयतासंयत के लिए भजना समझनी चाहिए। (अर्थात्-कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते ) नोसंयतनोग्रसंयत-नोसंयतासंयत आयुष्यकर्म को नहीं बांधते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org